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बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

"क्षणिकाएँ"

                       

उसने कहा था---

मैं आत्मा हूँ उसकी

मेरे से ही उसकी

 सम्पूर्णता है

मैं जीये जा रही हूँ

अपनी अपूर्णता के साथ

ताकि…

मैं उसकी सम्पूर्णता बनी रहूँ

---

 बाल्टी भर

 धूप ढकी रखी है

एक कोने में…

अंधेरा घिर आए तो

छिड़क लेना…

रोशनी में...

मन का आंगन हँस देगा

---

देख कर भी किसी की

अनदेखी करना

भले ही …

किसी की नजरों में

सभ्यता का दायरा होगा

छलना को तो यह...

अपना कौशल ही लगता है


***


28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्रभावी क्षणिकाएं मीना जी । अरसे बाद क्षणिकाएं पढ़ीं मैंने । आभारी हूँ आपका ।

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    1. आपकी मान भरी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार जितेंद्र जी!

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  2. ---
    देख कर भी किसी की
    अनदेखी करना
    भले ही …
    किसी की नजरों में
    सभ्यता का दायरा होगा
    छलना को तो यह...
    अपना कौशल ही लगता है।
    बहुत खूब। शब्दों की जादूगरी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल उपस्थिति और सराहना से सृजन सार्थक हुआ..आभारी हूँ मीना जी!

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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    1. चर्चा मंच पर प्रस्तुति साझा करने हेतु सादर आभार दिलबाग सिंह जी!

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  4. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु स्नेहिल आभार अनीता जी!

      हटाएं
  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2036...कुछ देर जागकर हम आज भी सो रहे हैं...) पर गुरुवार 11 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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    1. "पांच लिंकों का आनन्द" में सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार रवीन्द्र सिंह जी!

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  6. असीम सौंदर्य से परिपूर्ण क्षणिकाएँ । तरंगों का हिलोरा ... अति सुन्दर ।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु स्नेहिल आभार अमृता जी!

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  7. उत्साहवर्धन करने हेतु सादर आभार सर!

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  8. बहुत सुंदर क्षणिकाएं, मीना दी।

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    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी!

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  9. वाह!मीना जी ,बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं हैं ।सभी एक से बढकर एक ।
    बालटी भर धूप ढकी रखी है एक कोने में ..वाह !!

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    1. आपकी स्नेहिल उपस्थिति और सराहना से सृजन सार्थक हुआ..आभारी हूँ शुभा जी!

      हटाएं
  10. देख कर भी किसी की

    अनदेखी करना

    भले ही …

    किसी की नजरों में

    सभ्यता का दायरा होगा

    छलना को तो यह...

    अपना कौशल ही लगता है
    बेहतरीन क्षणिकाएं

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    1. आपका हार्दिक स्वागत सरिता जी एवं हार्दिक आभार सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु ।

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  11. कौशल और चालाकी में कई बार थोडा सा फर्क होता है ...
    सुन्दर क्षणिकाएं हैं सभी ...

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  12. सत्य कथन नासवा जी ..चालाकी में निपुण भाव के कारण अक्सर सरल हृदय को ठेस ही पहुँचती है । आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला । हृदय से असीम आभार।

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  13. बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं हैं मीना जी

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"