बालकनी में नहाए धोये गमलों में खिले गुलाब
रेलिंग से बाहर हुलस हुलस कर झांक रहे हैं और ..,
उस पार मैदान में गुलमोहर अपने साथियों संग इठला रहे हैं ॥
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मन सिमट रहा है खोल में कछुए जैसा
और उसी खोल में अभिव्यक्ति भी ..,
पर ग़ज़ब यह कि शोर बहुत करता है ॥
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किर्चें चुभ गई काँच सरीखी
और लहू की बूँद भी नहीं छलकी..,
गंगा-जमुना हैं कि बस.., बह निकली ॥
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एक से बढ़ कर एक त्रिवेणी । अंतिम वाली तो आर पार हो गयी ।।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना पा कर लेखनी को मान मिला । हृदयतल से हार्दिक आभार मैम !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.5.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4435 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
सृजन को चर्चा मंच की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आ. दिलबागसिंह जी ।
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंकिर्चें चुभ गई काँच सरीखी
और लहू की बूँद भी नहीं छलकी..,
गंगा-जमुना हैं कि बस.., बह निकली.. वाह!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार अनीता जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
पाँच लिंकों का आनन्द में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आ. रवीन्द्र सिंह जी ।
हटाएंवाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना पा कर लेखनी को मान मिला । सादर आभार आ.विश्वमोहन जी।
हटाएंवाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर त्रिवेणी।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार ज्योति जी।
हटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक त्रिवेणी।
जवाब देंहटाएंबधाई मीना जी ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंगुलमोहर और उनके साथियों की बात ही निराली है, उन्हें आदत होती है हर मौसम अपने हिसाब से ढल जाने की
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार कविता जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार अनुज ।
हटाएंअर्थपूर्ण और भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंत्रिवेणी
सुंदर सृजन
आपकी सराहना पा कर लेखनी को मान मिला । सादर आभार आ. ज्योति खरे सर।
हटाएंइस त्रिवेणी की धार निराली है। अति सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसृजन को मान प्रदान करती आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभारी हूँ अमृता जी !
हटाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण त्रिवेणियां सभी सार्थक गूढ़ता लिए।
अप्रतिम सृजन।
तीसरी त्रिवेणी पर एक क्षणिका।
दिन भी सूने रातें भी सूनी
और सूना - सूना दिल का
जहाँ होता है
ऐसे में भी महफ़िलें सजती है
आँखों में अश्कों की ।।
त्रिवेणियों का सार्थकता प्रदान करती आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । आपकी लेखनी से निःसृत
हटाएंक्षणिका बेहद मर्मस्पर्शी है ॥हृदयतल से हार्दिक आभार कुसुम जी!
एकाकी मन की व्यथा की भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय मीना जी।सच में कई बार नवल रूप में सजी प्रकृति भी मन बहलाने में सक्षम नहीं होती।
जवाब देंहटाएंसंगीत और गीत एकान्त की देन है । मेरे इस दृष्टिकोण को पोषित करती स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार प्रिय रेणु जी ! सस्नेह सादर वन्दे !
हटाएंThe information you have produced is so good and helpful, I will visit your website regularly.
जवाब देंहटाएंHaving read your article. I appreciate you are taking the time and the effort for putting this useful information together.
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