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रविवार, 10 जनवरी 2021

"उलझन"

               

रेशम के धागों सा

मन उलझा

उलझन की गांठ पकड़

अपना बन 

सुलझा दे कोई..


जीवन  की हलचल में

उठती नित नई तरंगों में 

कभी हाथ पकड़ 

जीने की राह

दिखला दे  कोई...


सीलन से भरी 

मन की देहरी 

स्वर्णिम सूरज से

भर धूप की मुट्ठी

मन के आंगन में

बिखरा दे कोई...


***















20 टिप्‍पणियां:

  1. उलझन की गांठ पकड़
    अपना बन
    सुलझा दे कोई..
    कई बार राह देखते रह जाते हैं अपने की भीड़ में उस अपने की जो सचमुच मन की उलझने सुलझा जाये....पर कई बार अपने और उलझा जाते हैं
    बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार सुधा जी !

      हटाएं

  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 11 जनवरी 2021 को 'सर्दियों की धूप का आलम; (चर्चा अंक-3943) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार रविंद्र सिंह जी !

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  3. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सर !

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सर !

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सर !

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार शांतनु जी!

      हटाएं
  7. सीलन से भरी

    मन की देहरी

    स्वर्णिम सूरज से

    भर धूप की मुट्ठी

    मन के आंगन में

    बिखरा दे कोई...

    बहुत बहुत सरस भावपूर्ण

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सर !

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सखी🙏🌹🙏

      हटाएं
  9. सुन्दर सरस मनोभावों को व्यक्त करती मनोहारी रचना..

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    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार जिज्ञासा जी!

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सधु चन्द्र जी 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"