Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

सोमवार, 22 नवंबर 2021

आत्म चिंतन

 


कांटें हैं पथ में फूल नहीं

चलना इतना आसान नहीं

यही सोच कर मन मेरा

 संभल संभल पग धरता है

मन खुद ही खुद से डरता है 


तू पेंडुलम सा  झूल रहा

बस मृगतृष्णा में डूब रहा

कल आज कभी भी हुआ नही

फिर क्यों इतनी जिद्द करता है

मन खुद से क्यों छल करता है


कल हो जाएंगे पीत पात

नश्वर तन की कैसी बिसात

समय चक्र रुकता नही

बस आगे आगे चलता है

मन यह कैसी परवशता है 


***




18 टिप्‍पणियां:

  1. मन की चंचलता बयान करती सार्थक पंक्तियाँ...

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (24 -11-2021 ) को 'मुखौटा पहनकर बैठे हैं, ढोंगी आज आसन पर' (चर्चा अंक 4258 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में रचना को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार रवीन्द्र जी 🙏

      हटाएं
  3. पूरी रचना की हर पंक्ति बहुत सुंदर,शानदार । बहुत बहुत शुभकामनाएं मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  4. बेचानियों में लिपटा कवि मन शब्दों के सहारे भावों की अथाह गहराई में उतरता है मोती की तलाश में...। आप धैर्य रखें... बहुत जल्दी सब ठिक हो जाएगा।

    कल हो जाएंगे पीत पात

    नश्वर तन की कैसी बिसात

    समय चक्र रुकता नही

    बस आगे आगे चलता है

    मन यह कैसी परवशता है
    शीघ्र अति शीघ्र आप स्वस्थ हो प्रभु से यही विनती है।
    हृदयस्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल और अपनेपन से पगी शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया ने लेखनी को ऊर्जा प्रदान की । हृदय से असीम आभार अनीता जी !

      हटाएं
  5. कांटें हैं पथ में फूल नहीं

    चलना इतना आसान नहीं

    यही सोच कर मन मेरा

    संभल संभल पग धरता है

    मन खुद ही खुद से डरता है

    आप को डरने की बिल्कुल जरुरत नहीं सखी,मन जब भी डरें उसे डांट लगा दे वो शान्त हो जाएगा।कवि मन को कहें "चलो किसी खुशनुमा वादियों में चलें" दुःख खुद ब खुद भाग जाएगा। हमारी दुआएं और स्नेह हर पल आप के साथ है सखी, आप शीघ्र स्वस्थ हो कर चर्चा मंच पर भी उपस्थित होगी। आप ऐसे ही सक्रिय रहे खुश रहें ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपके स्नेह का ढेर सारा आभार सखी ! आपका स्नेह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्बल है । मैं अभी ठीक हूँ । स्वास्थ्य धीरे धीरे जीवनरूपी पटरी पर लौटने लगा है पहले दाँत की परेशानी और अब tachycardia problem के कारण मुझे बहुत सारी गतिविधियों को डॉक्टर की सलाह के अनुसार विराम देना होगा । आपके स्नेह के लिए आभारी हूं🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. मन के भाव मन ही पढ़ पाता है ... और मन ही उसका समाधान भी देता है ...
    बहुत ज़रूरी है आत्म चिंतन समय समय पर ...
    भावपूर्ण रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पा कर लेखनी सार्थक हुई । आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु हृदय से आभार नासवा जी!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"