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मंगलवार, 26 जुलाई 2022

“क्षणिकाएँ”



न जाने किस मूड में

 आज मांग लिए तुमने

 मुझ से अपने हक

और मैंने भी…

भरी है तुम्हारी अंजुरी 

नेहसिक्त शुभेच्छाओं से

संभाल कर रखना..,

जीवन भर काम आएँगी 

🍁


बड़ी शिद्दत से कई बार 

दस्तक दी  होगी मैंने

तुम्हारे दिल के दरवाज़े पर…,

तब तुम्हारे पास फ़ुर्सत नहीं थी

और अब…,

मुझे भूलने की 

आदत पड़ गई है 

🍁


सावन - भादौ से

 पहले ही डूब जाते हैं 

पानी में खेत-खलिहान

लोगों की तरह.., 

धरती और बादलों की 

सहनशक्ति भी अब

 चुकी हुई सी लगती है 


🍁












14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर।
    शब्द-शब्द हृदय को छूता।

    बड़ी शिद्दत से कई बार
    दस्तक दी होगी मैंने
    तुम्हारे दिल के दरवाज़े पर…,
    तब तुम्हारे पास फ़ुर्सत नहीं थी
    और अब…,
    मुझे भूलने की
    आदत पड़ गई है... सच कहा आपने।
    बेहतरीन तीनों क्षणिकाएँ।
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  2. स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।आपका हृदय से असीम आभार अनीता ! सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बड़ी शिद्दत से कई बार
    दस्तक दी होगी मैंने
    तुम्हारे दिल के दरवाज़े पर…,
    तब तुम्हारे पास फ़ुर्सत नहीं थी
    और अब…,
    मुझे भूलने की
    आदत पड़ गई है
    ..सुंदर सराहनीय क्षणिका ।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार जिज्ञासा जी! सस्नेह सादर वन्दे!

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  5. क्षणिकाएं बहुत अच्छी हैं आपकी। दूसरी क्षणिका का तो कोई सानी ही नहीं। जज़्बाती रिश्ते कुछ इसी तरह बनते-बिगड़ते हैं।

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  6. आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ जितेन्द्र जी ! हार्दिक आभार एवं सादर वन्दे !

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  7. उत्तर
    1. ओंकार सर हार्दिक आभार सहित सादर वन्दे !

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  8. सावन - भादौ से

    पहले ही डूब जाते हैं

    पानी में खेत-खलिहान

    लोगों की तरह..,

    धरती और बादलों की

    सहनशक्ति भी अब

    चुकी हुई सी लगती है

    सही कहा आपने प्रकृति भी अब अपनी सहनशक्ति को चुकी है।
    बेहतरीन क्षणिकाएं,🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।आपका हृदय से असीम आभार कामिनी जी ! सादर सस्नेह वन्दे !

      हटाएं
  9. तीनों क्षणिकाएँ मन पर दस्तक दे रही हैं ।
    वैराग्य का सा भाव लिए जब सारे हक़ छोड़ दें तो फिर किसी की दस्तक से क्या फर्क पड़ने वाला । बादलों का बिम्ब ले कर सहनशक्ति का चुक जाना ...... लाजवाब लिखा है ।

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    1. सृजन का मान बढ़ाती अनमोल प्रतिक्रिया पा कर लेखनी सार्थक हुई ।आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए आभारी हूँ
      आ . दीदी ! सस्नेह सादर वन्दे !

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  10. क्या बात है.... बहुत बढ़िया...काफी कुछ कह दिया आपने !

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ अनुज संजय ! हार्दिक आभार सहित सादर वन्दे !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"