Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

'मुक्तक"

चले जब हाथ थामे फिर संग छोड़ना क्यों है ।

मिले कैसी भी दुश्वारी अब मुँह मोड़ना क्यों हैं ।।

बने जन्मों के साथी हैं  सब सुख-दुख में साझी ।

इरादे नेक  हैं अपने तो  बंधन तोड़ना क्यों है ।।


यादों की गलियों में मैं  बचपन को ढूंढती हूँ ।

पल-पल घटते जीवन में अमन को ढूंढती हूँ ।।

मेघों को देख  दृगों में उतर आती है करूणा ।

इन्द्रधनुषी सुमनों से खिले उपवन को ढूंढती हूँ ।।


थोड़ा भरोसा है खुद पर बहुत ज्यादा नही है ।

सीमित रहेगी सदा वह  यह भी तो वादा नहीं है ।।

न तो मोह की सीमा न चाहतों पर बंधन ।

रुक जाए गंतव्य से पहले धारा का इरादा नहीं है ।।


 🍁🍁🍁🍁


18 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-०९-२०२०) को 'पिछले पन्ने की औरतें '(चर्चा अंक-३८३६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता.

      हटाएं
  2. बने जन्मों के साथी हैं सब सुख-दुख में साझी ।

    इरादे नेक हैं अपने तो बंधन तोड़ना क्यों है ।।

    वाह!!!
    लाजवाब मुक्तक।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा सुधा जी ! हार्दिक आभार.

      हटाएं
  3. वाह मीना जी सार्थक कथ्य और सार्थक भाव लिए सुंदर मुक्तक ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है। हार्दिक आभार कुसुम जी !

      हटाएं
  4. आज की परिस्थितियों में रिश्ते-नाते और बंधन, ये सब पानी के बुलबुले जैसे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  5. क्षणभंगुरता को जानते हुए भी स्थायित्व खोजना जीवन का सार है । आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ सर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. चले जब हाथ थामे फिर संग छोड़ना क्यों है ।
    मिले कैसी भी दुश्वारी अब मुँह मोड़ना क्यों हैं ।।
    बने जन्मों के साथी हैं सब सुख-दुख में साझी ।
    इरादे नेक हैं अपने तो बंधन तोड़ना क्यों है ।।

    बहुत खूब,इरादे नेक हो तो मुश्किलें भी आसान हो जाती है,लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमस्कार आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ कामिनी जी! हार्दिक आभार सहित स्नेहिल नमस्कार !

      हटाएं
  7. यादों की गलियों में मैं बचपन को ढूंढती हूँ ।
    पल-पल घटते जीवन में अमन को ढूंढती हूँ ।।

    वाह !!!
    भावपूर्ण बहुत सुंदर मुक्तक !!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखनी का मान बढ़ा । हार्दिक आभार शरद जी !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"