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सोमवार, 15 जनवरी 2018

"वो"(3)

(भाग तृतीय)

मौहले भर में प्रसिद्ध था कि बरजी काकी चूंकि बचपन में ही ससुराल आ गई  और घर में सबकी दुलारी थी इसलिए स्वभाव में स्त्रीगत गुणों का अभाव व पुरुषोचित गुणों का बाहुल्य था। दिखने में शान्त तथा गंभीर स्वभाव की लगती थी अन्य महिलाओं की तरह उस को चकल्लस जमाने की आदत नही थी पर ऐसा भी नही कि जागरुकता का अभाव हो यदि कोई कुछ कह दे तो सामने वाले को चुप करने की कला में भी माहिर थी। मौहल्ले भर की औरतें उससे उसके दंबग स्वभाव के कारण कुछ दूरी बना कर ही चलती थी। एक दिन दीया बैठी पढ़ रही थी कि माँ ने आ कर कहा -”बरजी के यहाँ से मटके ले आओ दोनों बहने , वो देकर जाएगी तो कच्चा-पक्का पटक जाएगी फिर बदलवाने का झंझट रहेगा।”   दीया ने हैरानी से माँ की ओर देखा , वे अक्सर ऐसे काम खुद ही कर लेती हैं उसको असमंजस में देख कर बोली - “तबियत ठीक नही लग रही , नही ले आती खुद ही ।” मुक्ता तो जैसे तैयार बैठी थी ,किताब आगे से हटाते हूए बोली -”चलो दीदी।”
                     उस दिन पहली बार दीया ने घर के नाम पर काकी का पूरा साम्राज्य देखा - लम्बा-चौड़ा आंगन , आंगन के बीच बड़ा सा नीम का पेड़ ,कई जगह चिकनी मिट्टी के ढेर , एक गड्ढे में भीगी गीली मिट्टी गीले कपड़े से ढकी , पास ही बर्तन बनाने वाला चाक , कोने में एक बैठकनुमा कमरा , लम्बी कतार में पाँच कमरे और छत पर करीने से लगाई  मटकों की कतार आंगन से भी साफ दिखाई दे रही थी ,घर के कोने में बड़ा सा आवा जिस में मिट्टी के बर्तन पकते थे। कई बार  उसका उठता धुँआ घर तक पहुँचता था। विस्फारित नजरों से यहाँ-वहाँ देखती बहनों को आवाज सुनाई दी  - “अन्दर आ जाओ ! जेठानीजी बोली थीं लड़कियों को भेजती हूँ।”
                            बड़े प्यार से उसने दो मटके निकाल कर दिए , कच्चे -पक्के की जाँच के लिए अँगुली से बजा कर दिखाया। सोच तो बहुत कुछ वह भी रही थी पर मुक्ता कहाँ चुप रह सकती थी -” काकी पक्की व्यापारी है , एक मटका पन्द्रह रुपए और बड़ा पच्चीस और  सुराही .....।"   दीया ने जोर से बहन का हाथ पकड़ कर खींचा चुप कराने के लिए। " ना बेटा…..,मुँहफट है पर मन की साफ है तेरी बहन।" ब्याह हो कर जाओगी तब समझोगी घर चलाना , बच्चे पालना और आजकल तो मरी पढ़ाई-लिखाई भी महंगी होती जा रही है , फिर उनका शादी-ब्याह करना। रिश्तेदारी और परिवार में हजार खर्चे , कभी किसी का भात तो कभी बच्चा होने पर दस्तूर और हारी -बीमारी हो तो……, जी के  जंजाल बने रहते हैं खर्चे । साल के कुछ‎ महिने खाली भी निकलते हैं।   तुम्हारी तरह पढ़े-लिखे तो नही है हम पर इतना पता है कि जीने के लिए रुपए-पैसे की जरुरत हर इन्सान को होती है और पैसा कमाने के लिए काम करना ही पड़ता है। अभी ये बातें नही समझ पाओगी लेकिन ब्याह हो जाएगा उस दिन गृहस्थी के झंझट समझ जाओगी।"
                       उसकी बातें सुनकर दीया हैरान और हतप्रभ थी कि अर्थशास्त्र के आरम्भिक सिद्धान्त कितनी आसानी से समझा दिए काकी ने साथ ही घर-गृहस्थी चलाने की कुशल सीख भी दे दी। मटके हाथों में थामें दोनों घर की तरफ जा रही थी तो मौन तोड़ते हुए मुक्ता ने पूछा - क्या सोच रही हो दीदी ? तुम्हारी नूरजहाँ के बारे में , मुस्कुराते हुए दीया ने जवाब दिया ।
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(समाप्त)

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर,सुगढ़ शिल्प से गूँथकर कितनी सराहनीय कहानी बना दिया आपने। सच म़े मीना जी बहुत सुंदर लिखी है आपने कहानी👌👌

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    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया‎ से उत्साह‎वर्धन हुआ‎.प्रयास रहेगा आगे भी इस तरह और लिखूं.

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' १७ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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    1. "लोकतन्त्र" संवाद मंच पर मेरी कहानी "वो" को लिंक संयाजन में स्थान देने के लिए‎ हार्दिक धन्यवाद ध्रुव सिंह जी .

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  3. बरजी काकी का चरित्र बाखूबी रच है आपने वो गाँव के माहोल की होते हुए भी पूर्णतः कुशल और समाज को दिशा देने वाला है ...
    अच्छी लगी कहानी आपकी ...

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    1. लिख‎ना सफल हुआ‎ इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया‎ पा कर.

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  4. बेहतरीन रचना ,भारतीय नारी के चरित्र को काकी के माध्यम से बख़ूबी चरितार्थ किया हुआ है इस रचना में
    मीना जी

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    उत्तर
    1. उत्साह‎वर्धन करती प्रतिक्रिया‎ हेतु हृदयतल से धन्यवाद ऋतु जी.

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  5. वाह!!मीना जी ,आपकी लेखनी की कायल है गई मैं तो ..।

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  6. शुभा जी इतनी सुदर प्रतिक्रिया‎ के लिए‎ बहुत बहुत‎ धन्यवाद. मेरा लेखन सफल हुआ.

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  7. एक अनगढ़ अनपढ़ स्त्री भी कितनी व्यवहारकुशल हो सकती है, इसे दर्शाती सुंदर कहानी ।

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  8. o mother,mount kalash is your abude.the entire world is your family.gods indr etc. praise you.all the group of eight sidhis stand in your front with folded hands.the god of the gggods is your consort.your fortune is not comparable with anyone-aadi shnkrachary

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  9. Aadi Shankracharya quote on my story,is a great honor for me. Thank you so much Ashok ji.

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"