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बुधवार, 4 जुलाई 2018

"उम्मीद"

काली घटा घिरी अम्बर पे ।
पछुआ पवनें चली झूम के ।।
हर्षित किसान चला खेत पे ।
करता  चिन्तन अपने मन में ।।

नाचे मोर कुहके कोयलिया ।
बैलों के गले रुनझुन घंटियां ।।
घर भर में हैं छाई खुशियां ।
अब के सीजन होगा बढ़िया ।।

मानसून बढ़िया निकलेगा
मेहनत होगी खेत हँसेगा
साहूकार का कर्ज चुकेगा ।
यह साल अच्छा गुजरेगा ।।

हैं हम सब के साझे सपने
गैर नहीं यहां सब हैं अपने ।
खुशियों से ये पलछिन बीते
सावन से तो जुड़ी उम्मीदें ।।

हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
प्रकृति माँ से यही याचना ।
भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
अब के सावन झूम के बरसे ।।

  XXXXXXX

20 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 5 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1084 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार रविन्द्र सिंह जी । "पाँच लिंकों का आनंद" का आनन्द से जुड़ना मेरे लिए हर्ष का विषय है।

      हटाएं
  2. हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
    प्रकृति माँ से यही याचना ।
    भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
    अब के सावन झूम के बरसे ।।
    निराशा भरे कदम
    ठिठकते तो है
    पर रुकते नहीं,
    उम्मीद का दामन हर हाल में हर प्रयत्नशील के साथ चलता ही रहता है । इसके विभिन्न चरणों को इस कविता में इतनी खुबसूरती से पिरोने के लिये आभार सहित...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. किसान और कृषि रीढ़ हैं विकास की मगर अनदेखी ही की जाती है उनकी मेहनत । आपने इस सृजन को इतना मान दिया मेरे भाव व लेखन दोनों सफल हुए ।

      हटाएं
  3. बारिश एक उम्मीद लेकर आती है। अनगिनत सूखे सपनो़ के बिचड़े बरखा में भींगकर हरे होते हैं खासकर किसान तो सालभर इसी उम्मीद में रहता है।
    बेहद सुंदर संदेश देती,सारगर्भित रचना।
    हर बंध बहुत अच्छा है मीना जी...👌

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत अनुराधा जी . रचना सराहना के लिए अति आभार .

      हटाएं
  5. उम्मीदों को सजाता सुंदर संदेश ले आता पावस
    सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
    प्रकृति माँ से यही याचना ।
    भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
    अब के सावन झूम के बरसे ।।
    बहुत ख़ूब... अनुपम। एक कृषक के मन की अभिव्यक्ति को दुर्लभ रूप दिया आपने👌👌👌👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर संदेश देती सार्थक रचना..

    जवाब देंहटाएं
  8. आमीन ...
    ये बादल बरसें उर झूम नव बरसें ... खेतों को तृप्त करें पर ग़रीब के झोंपड़ों पे। बाई मेहरबानी रखें .।..
    मनभावन रचना जो दिलों को झूमा रही है ... भिगो रही है ...

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  9. हृदयस्पर्शी व्याख्यायित प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार नासवा जी ।

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  10. निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  11. हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
    प्रकृति माँ से यही याचना ।
    भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
    अब के सावन झूम के बरसे ।।.... हृदयस्पर्शी रचना

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"