काली घटा घिरी अम्बर पे ।
पछुआ पवनें चली झूम के ।।
हर्षित किसान चला खेत पे ।
करता चिन्तन अपने मन में ।।
नाचे मोर कुहके कोयलिया ।
बैलों के गले रुनझुन घंटियां ।।
घर भर में हैं छाई खुशियां ।
पछुआ पवनें चली झूम के ।।
हर्षित किसान चला खेत पे ।
करता चिन्तन अपने मन में ।।
नाचे मोर कुहके कोयलिया ।
बैलों के गले रुनझुन घंटियां ।।
घर भर में हैं छाई खुशियां ।
अब के सीजन होगा बढ़िया ।।
मानसून बढ़िया निकलेगा
मानसून बढ़िया निकलेगा
मेहनत होगी खेत हँसेगा
साहूकार का कर्ज चुकेगा ।यह साल अच्छा गुजरेगा ।।
हैं हम सब के साझे सपने
गैर नहीं यहां सब हैं अपने ।
खुशियों से ये पलछिन बीते
सावन से तो जुड़ी उम्मीदें ।।
हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
प्रकृति माँ से यही याचना ।
भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
अब के सावन झूम के बरसे ।।
XXXXXXX
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 5 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1084 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत बहुत आभार रविन्द्र सिंह जी । "पाँच लिंकों का आनंद" का आनन्द से जुड़ना मेरे लिए हर्ष का विषय है।
हटाएंहाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
जवाब देंहटाएंप्रकृति माँ से यही याचना ।
भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
अब के सावन झूम के बरसे ।।
निराशा भरे कदम
ठिठकते तो है
पर रुकते नहीं,
उम्मीद का दामन हर हाल में हर प्रयत्नशील के साथ चलता ही रहता है । इसके विभिन्न चरणों को इस कविता में इतनी खुबसूरती से पिरोने के लिये आभार सहित...
किसान और कृषि रीढ़ हैं विकास की मगर अनदेखी ही की जाती है उनकी मेहनत । आपने इस सृजन को इतना मान दिया मेरे भाव व लेखन दोनों सफल हुए ।
हटाएंबारिश एक उम्मीद लेकर आती है। अनगिनत सूखे सपनो़ के बिचड़े बरखा में भींगकर हरे होते हैं खासकर किसान तो सालभर इसी उम्मीद में रहता है।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर संदेश देती,सारगर्भित रचना।
हर बंध बहुत अच्छा है मीना जी...👌
तहेदिल से शुक्रिया श्वेता जी:-)
हटाएंसुंदर रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत अनुराधा जी . रचना सराहना के लिए अति आभार .
हटाएंउम्मीदों को सजाता सुंदर संदेश ले आता पावस
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
अति आभार कुसुम जी ।
हटाएंहाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
जवाब देंहटाएंप्रकृति माँ से यही याचना ।
भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
अब के सावन झूम के बरसे ।।
बहुत ख़ूब... अनुपम। एक कृषक के मन की अभिव्यक्ति को दुर्लभ रूप दिया आपने👌👌👌👏👏👏
तहेदिल से शुक्रिया अमित जी ।
हटाएंसुंदर संदेश देती सार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार पम्मी जी ।
हटाएंआमीन ...
जवाब देंहटाएंये बादल बरसें उर झूम नव बरसें ... खेतों को तृप्त करें पर ग़रीब के झोंपड़ों पे। बाई मेहरबानी रखें .।..
मनभावन रचना जो दिलों को झूमा रही है ... भिगो रही है ...
हृदयस्पर्शी व्याख्यायित प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंनिमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंजरूर ध्रुव सिंह जी ।
हटाएंहाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
जवाब देंहटाएंप्रकृति माँ से यही याचना ।
भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
अब के सावन झूम के बरसे ।।.... हृदयस्पर्शी रचना
बहुत बहुत आभार आपका ।
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