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मंगलवार, 20 नवंबर 2018

"फिक्र"

मेरी कुछ यादें और उम्र के अल्हड़ बरस ।
अब भी रचे-बसे होंगें उस छोटे से गाँव में ।।


जिसने ओढ़ रखी है बांस के झुरमुटों की चादर ।
और सिमटा हुआ है ब्रह्मपुत्र की बाहों में ।।


आमों की बौर से लदे सघन कुंजों से ।
पौ फटते ही कोयल की कुहूक गूँजा करती थी ।।


गर्मी की लूँ सी हवाएँ बांस के झुण्डों से ।
सीटी सी सरगोशी लिए बहा करती थी ।।


हरीतिमा से ढका एक छोटा सा घर ।
मोगरे , चमेली और गुलाबों सा महकता था ।।


अमरूद , आम और घने पेड़ों  के बीच ।
हर दम सोया सोया सा रहता था ।।


बारिशों के मौसम में उसकी फिक्र सी रहने लगी है ।
नाराजगी में नदियाँ गुस्से का इजहार करने लगी हैं ।।



                      X X X X X

16 टिप्‍पणियां:

  1. बचपन की यादें और बीते हुए पल हमेशा साथ रहते हैं यादों में रहते हैं ... अच्छा लिखा है ...

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    उत्तर
    1. आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया सदैव बेहतर सृजन के लिए प्रेरित करती है नासवा जी इसके लिए हृदयतल से आभारी हूँ ।

      हटाएं
  2. नाराजगी में नदियाँ गुस्से का इजहार करने लगी हैं ।।
    ...... बहुत सुंदर शब्द - चित्र!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके हौसला अफजाई भरे अनमोल वचनों के लिए हृदयतल से आभार विश्व मोहन जी ।

      हटाएं
  3. मेरी कुछ यादें और उम्र के अल्हड बरस
    अरे वाह बहुत खूबसूरत लिख डाला आज तो
    गर्मी की लूँ सी हवाएँ बांस के झुण्डों से बढ़िया है क्योकि बीते हुए पलों को कोई नहीं भूलता ...बहुत अच्छे भाव. बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !

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  4. आपकी सारगर्भित और अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ संजय जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 23 नवम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1225 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "पाँच लिंकों का आनंद" के1225 वें अंक में मेरी रचना को सम्मिलित कर मान देने के के लिए सादरा आभार रविंद्र सिंह जी ।

      हटाएं
  6. सुरम्य प्रकृति की अनुपम गोद में, एक सुंदर तन मन को विश्रांति देता सदन और बाहरी नैसर्गिक छटा से प्रकृति गत प्रतिक्रिया का बहुत सहज सुंदर मनलुभाता चित्र प्रस्तुत किया है मीना जी आपने।
    आपकी रचना मन मोहक है।
    अप्रतिम।

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    उत्तर
    1. आपकी हौसला अफजाई करती प्रतिक्रिया सदैव मन को प्रेरित करती है नव सृजन के लिए । तहेदिल से आभार कुसुम जी ।

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  7. बेहद सुंदर,सोंधी माटी की खुशबू से भरपूर.. वाहहह मीना जी लाज़वाब लेखन👌

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    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव प्रफुल्लित करती है श्वेता जी । बहुत बहुत आभार !!

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  8. यादों में बसा वह सुन्दर रमणीय सदन....
    बारिशों के मौसम में उसकी फिक्र सी रहने लगी है। नाराजगी में नदियाँ गुस्से का इजहार करने लगी हैं।
    इतने खूबसूरत आशियाने की फिक्र भी लाजमी है...
    बहुत लाजवाब
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी सारगर्भित और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए अति आभार सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"