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रविवार, 8 दिसंबर 2019

"संकल्प"

संभल कर चल !
सांझ के साये में...,
सांझ के साये में
घूमते हैं नर-पिशाच
तेरे संभले डग
और तेरी बुद्धिमता…,
तेरा रक्षा कवच है
खुद पर कर यकीन 
तेरा यकीन ही
देगा तुझे ताकत
महिषासुरमर्दिनी सी …,

जानती तो है तू !
दोधारी तलवार है 
तेरी जिन्दगी…
अबला है तो...
रोती क्यों हैं ?
सबला है तो
बेलौस क्यों है ?

शतरंज की बिसात 
जैसी है जिन्दगी
जरा सी अनदेखी
पलट देती है बिसात
चंद हमदर्दी के अल्फाज़
और फिर…
वही ढाक के तीन पात

★★★





23 टिप्‍पणियां:

  1. वही 'इंडिया शाइनिंग'
    वही 'जगद गुरु भारत'
    लेकिन माओं, बहनों, बहुओं और बेटियों का क्या होगा?
    वही 'ढाक के तीन पात'

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  2. सवाल तो बहुत हैं बस जवाब ही नदारद हैं ।

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  3. शतरंज की बिसात
    जैसी है जिन्दगी
    जरा सी अनदेखी
    पलट देती है बिसात
    चंद हमदर्दी के अल्फाज़
    और फिर…
    वही ढाक के तीन पात
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सटीक...
    उत्कृष्ट सृजन के लिए ढेर सारी बधाई मीना जी !

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    उत्तर
    1. रचना सराहना हेतु हृदय कघ आसीम गहराईयों से आभार सुधा जी । सस्नेह वन्दे ।

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर रचना को मान देने हेतु सादर आभार ।

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  5. शतरंज की बिसात
    जैसी है जिन्दगी
    जरा सी अनदेखी
    पलट देती है बिसात
    चंद हमदर्दी के अल्फाज़
    और फिर…
    वही ढाक के तीन पात... वाह !बेहतरीन सृजन दीदी जी
    सादर

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    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से रचना को मुखरता मिली ..,हृदय से असीम आभार ।

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को    "नारी का अपकर्ष"   (चर्चा अंक-3545)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  7. हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी ।

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  8. "अबला है तो...
    रोती क्यों हैं?
    सबला है तो
    बेलौस क्यों है?"

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  9. ब्लॉग पर उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार ।

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  10. खुद का विश्वास ही काम आता है ...
    सच है महिषासुरमर्दिनी बन जाना जरूरी है आज नारी को ...

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    उत्तर
    1. रचना को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के हृदय से असीम आभार नासवा जी ।

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  11. चंद हमदर्दी के अल्फाज़
    और फिर…
    वही ढाक के तीन पात
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सटीक...
    उत्कृष्ट सृजन...मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार संजय जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"