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मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

"नियति"

आड़ी-टेढ़ी पगडंडी ,
और उसके दो छोर ।
एक दूजे से मिलने की ,
आस लिए चले जा रहे हैं ।
उबड़-खाबड़ रास्तों से  ,
कभी पास-पास , कभी दूर-दूर ।
हमें आपस में बाँधने को ,
ना पगडण्डी है , 
और ना ही कोई कूल-किनारा ।
मगर फिर भी ,
बन्धन तो बन्धन है ।
हमें बाँधता है ,
सब की 'आँखों का तारा' ।
कभी घटता , कभी बढ़ता ,
नीलगगन की शोभा ...
दुग्ध धवल सा चाँद ।
दिन-भर की दौड़-धूप ,
और उसके बाद विश्रांति काल ।
जब उससे ... 
नजरें मिलती है ,
मेरी भी.. तुम्हारी भी ।
 तो , तार जुड़ते हैं ,
मन के ..मन से..
आ जाती है ।
कुशल-क्षेम ..
मिलना ना मिलना ,
तो बस…
नियति की बात है ।

★★★

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. 'रचना को 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-12-2019) को     "आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो"  (चर्चा अंक-3539)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर मेरे सृजन को मान देने के लिए सादर आभार आदरणीय ।

      हटाएं


  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.....4 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "पाँच लिंकों का आनन्द" पर रचना साझा करने हेतु आत्मिक आभार पम्मी जी ।

      हटाएं
  5. बहुत ही सुंदर सृजन मीना जी ,दिल को छू गई ,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहिल नमस्कार कामिनी जी ! आपकी सराहना सम्पन्न हौसला अफजाई के लिए आत्मिक आभार ।

      हटाएं
  6. जब उससे ...
    नजरें मिलती है ,
    मेरी भी.. तुम्हारी भी ।
    तो , तार जुड़ते हैं ,
    मन के ..मन से..
    आ जाती है ।
    कुशल-क्षेम ..
    मिलना ना मिलना ,
    तो बस…
    नियति की बात है
    कुशल रहें सुखी रहें अपने जहाँ भी हों....बस यही भाव एक दिन नियति को बदल देगा फिर मिलन जरुर होगा....
    बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से रचनात्मकता को मान मिला । बहुत बहुत आभार सुधा जी ।

      हटाएं
  7. बहुत गहराई समेटे सुंदर सृजन ।
    भाव पक्ष बहुत अभिनव है मीना जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. जब उससे ...
    नजरें मिलती है ,
    मेरी भी.. तुम्हारी भी ।
    तो , तार जुड़ते हैं ,
    मन के ..मन से..
    ....सुंदर सृजन मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. असीम आभार संजय जी । आपकी उत्साहवर्धित टिप्पणी की सदैव प्रतीक्षा रहती है ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"