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गुरुवार, 17 जून 2021

"नेह"

तुम्हारा नेह भी

हवा-पानी सरीखा  है

चाहने पर  भी 

पल्लू के छोर से

बंधता नहीं

बस…,

खुल खुल जाता है 

कभी-कभी…,

चुभ जाता है

कुछ भी

 अबोला सा बोला

जैसे कोई टूटा काँच…,

कुछ समय की

 खींचतान...

और फिर 

कुछ ही पल में

एक सूखी सी

 मुस्कुराहट…,

फर्स्ट एड का रुप धर

बुहार देती है मार्ग के

कंटक…,

कोई नाम नहीं

न ही कोई उपमा

अहं की सीमाएँ लांघ

निर्बाध बहता

तुम्हारे नेह का सागर

बिन बोले 

जता जाता है तुम्हारे

नेह की परिभाषा


***

39 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर मन को छूता सृजन।

    तुम्हारा नेह भी
    हवा-पानी सरीखा है
    चाहने पर भी
    पल्लू के छोर से
    बंधता नहीं..वाह!काश बाँध पाते।
    बहुत ही सुंदर दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई सस्नेह आभार अनीता जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के सादर आभार सर!

      हटाएं
  4. कोई नाम नहीं
    न ही कोई उपमा
    अहं की सीमाएँ लांघ
    निर्बाध बहता
    तुम्हारे नेह का सागर
    बिन बोले
    जता जाता है तुम्हारे
    नेह की परिभाषा

    सुन्दर... प्रेम यही तो होता है....जो बस अहसास दिला जाता है अपने होने का....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार विकास जी!

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के बहुत बहुत आभार सर!

      हटाएं
  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०६-२०२१) को 'नेह'(चर्चा अंक- ४१००) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।

      हटाएं
  7. कोई नाम नहीं
    न ही कोई उपमा
    अहं की सीमाएँ लांघ
    निर्बाध बहता
    तुम्हारे नेह का सागर
    बिन बोले
    जता जाता है तुम्हारे
    नेह की परिभाषा
    यही तो है नेह की परिभाषा... जो शब्दों में बयां कहाँ हो पाती है....बस एहसासमात्र ही तो है नेह।
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सुन्दर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । हृदयतल से असीम आभार सुधा जी।

      हटाएं
  8. मनकभी-कभी…,

    चुभ जाता है

    कुछ भी

    अबोला सा बोला

    जैसे कोई टूटा काँच…,

    कुछ समय की

    खींचतान...मन को छूती सुंदर भावों भरी रचना, बहुत शुभकामनाएं आपको मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!आपकी प्रतिक्रिया सदैव सृजन को मान देकर मुझ में लेखन के प्रति उत्साह का संचार करती है ।

      हटाएं
  9. अल्फ़ाज़ की ज़रूरत ही कहाँ जब ज़ुबां सब समझते हैं ज़ज़्बात की? नेह की भाषा को किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं। वह स्वतः ही पहुँच जाती है अपने गंतव्य तक। नपे-तुले शब्दों में गहरी बात कह दी है आपने मीना जी। ऐसी बातें केवल समझने और महसूस करने के लिए होती हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा । हृदयतल से असीम आभार जितेन्द्र जी!

      हटाएं
  10. खुल खुल जाता है

    कभी-कभी…,

    चुभ जाता है

    कुछ भी

    अबोला सा बोला

    जैसे कोई टूटा काँच…,

    "नेह' कहाँ कभी बंधा है,अत्यधिक नेह में भी कभी ना कभी कुछ काँच सा चुभ ही जाता है।
    क्या बात है मीना जी,नेह-नेह में ही बहुत कुछ कह गई आप तो।
    आपके मन के कोमल भावों को सत-सत नमन मेरा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता और मान मिला । तहेदिल से आभार कामिनी जी । सस्नेह वन्दे ।

      हटाएं
  11. नेह --
    कहाँ बन्ध पाया
    कभी परिभाषा में ,
    स्त्री और पुरुष के
    नेह भी तो
    होते हैं
    अलग अलग
    इसीलिए कर लिया
    हर एहसास तुमने
    और कर दिया बयाँ
    अपने अनुभव का निचोड़ ।

    वैसे नेह में खुशी है तो दुख भी कम नहीं ।
    बहुत अच्छा लिखा है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी मर्मस्पर्शी कविता ने सृजन को पूर्णता प्रदान करके मेरा मान बढ़ाया 🙏 हृदयतल से असीम आभार आ. संगीता जी 🙏

      हटाएं
  12. नेह मन का कोमलतम भावना है जिसमें हर्ष और विषाद दोनों मिलते हैं, लाजबाव सृजन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार भारती जी !

      हटाएं
  13. आपकी लिखी  रचना  सोमवार 21  जून   2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को साझा करने हेतु हृदयतल से सादर आभार आ.संगीता जी ।

      हटाएं
  14. कोई नाम नहीं
    न ही कोई उपमा
    अहं की सीमाएँ लांघ
    निर्बाध बहता
    तुम्हारे नेह का सागर
    बिन बोले
    जता जाता है तुम्हारे
    नेह की परिभाषा
    बहुत सुन्दर 👌👌

    जवाब देंहटाएं
  15. कोई नाम नहीं
    न ही कोई उपमा
    अहं की सीमाएँ लांघ
    निर्बाध बहता
    तुम्हारे नेह का सागर
    बिन बोले
    जता जाता है तुम्हारे
    नेह की परिभाषा
    बहुत सुन्दर 👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार 🙏

      हटाएं
  16. आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार अनुराधा जी।

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रेम की गहनता भावविह्वलता जताया नहीं जाता महसूस किया जाता है।
    अलौकिक और पवित्र एहसास,
    अति हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन दी।

    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  18. आपकी ऊर्जावान सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी ! सस्नेह ...,

    जवाब देंहटाएं
  19. सागर के हृदय सी थाह है आपके लेखन में मीना जी ।
    मन को झकझोरती सी।
    अभिनव अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से आभार कुसुम जी! आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।

      हटाएं
  20. बंधन में बाँधा जाये तो नेह कहाँ ...
    जीवन है नेह, प्रेम को खुला छोड़ देना और देखना उन्मुक्त उड़ना ...
    बहुत भावपूर्ण रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  21. हृदयस्पर्शी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ नासवा जी । हार्दिक धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  22. मर्म को छूती बहुत ही भावपूर्ण और सशक्‍त कविता।

    जवाब देंहटाएं
  23. हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ संजय जी । हार्दिक धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  24. अबोला सा कितना कुछ बोल गया ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सुन्दर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । हृदयतल से असीम आभार अमृता जी!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"