Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

“सृजन”



ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये ।

पाप घटे कछु पुन्य किये अरु रोग घटे कछु औषध खाये ।

प्रीति घटे कछु माँगन तें अरु नीर घटे रितु ग्रीषम के आये ।

नारि प्रसंग ते जोर घटे जम त्रास घटे हरि के गुन गाये


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह छन्द पढ़ने का 

सुअवसर मिला इस छन्द को पढ़ने के बाद मेरी कलम ने 

इसी तर्ज पर कुछ यूं लिखा -


मित्र बढ़े ऐतबार संग और नेह सोच से सोच मिलाए ।

दर्प बढ़े ‘मैं‘ के बढ़ने संग वैर वाणी में कटुता आए ।

क्रोध बढ़े संयम खोने से उम्र योग से योग मिलाए ।

मान बढ़े सज्जन संगति से ज्ञान बुद्धि से लग्न लगाए ।


***

28 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०२ -२०२२ ) को
    'मान बढ़े सज्जन संगति से'(चर्चा अंक-४३४५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर “सृजन” को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार अनीता जी !

      हटाएं
  2. वाह!बहुत ही उम्दा व शानदार सृजन👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनीषा जी🌹

      हटाएं
  3. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. रीतिकाल के कवि की रचना और उससे प्रेरित हो किया गया सृजन लाजवाब है ।।👌👌👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मैम 🙏🌹🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ! मज़ा आ गया !
    धन्यवाद, मीना जी.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
      नूपुरं जी !

      हटाएं
  7. "ज्ञान घटे नर मूढ़ की संगत ध्यान घटे बिन धीरज आए।
    प्रीत घटे प्रदेश बसे अरु मान घटे नित ही नित जाए।
    सोच घटे कोई साधु की संगत रोग घटे कुछ औषध खाए।
    *गंग* कहे सुनी शाह अकबर पाप घटे गुण गोविंद के गाए।।"

    मीना जी ये👆 कुछ इस तरह से हैं रीतिकालिन कवि गंग के दोहे।
    थोड़ी सी शब्दावली बदली सी है।

    आपने दोहों का सचमुच दोहन किया है दुहा है इन्हें बहुत सटीक भावार्थ के रूप में नव सृजन साधुवाद।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार कुसुम जी समस्या समाधान हेतु 🙏 कभी पढ़ा भी था कवि गंग के कृतित्व को… कविता कोश पर पुनः पढ़ने को मिला तो सृजन काल तो रीतिकाल मिला पर कवि का नाम अज्ञात था । ढूँढने का प्रयास भी किया मगर दूसरी जगह भी अज्ञात ही मिला । मैंने मात्रा भार न लेकर बस उसी मूड में लिख दिया जैसे यह था । पुन:बहुत बहुत आभार आपका मेरे प्रयास की सराहना हेतु 🙏

      हटाएं
    2. मीना जी सस्नेह आभार आपका आपने भावों को बहुत अच्छे से दुहा है बहुत सुंदर है आपका प्रयास।
      और ये कवि गंग की रचना है ,दोहा नहीं लग रहा मैंने दोहा लिख दिया, लग रहा है सवैया है सवैया की गायन शैली में बैठ रहा है मात्रा भार भी ।

      हटाएं
    3. पुनः बहुत बहुत आभार कुसुम जी जानाकारी साझा करने हेतु आपकी प्रतिक्रिया से जहाँ सराहना मिली वहीं ज्ञानवर्धन भी हुआ 🌹🙏

      हटाएं
  8. मुझे तो साहित्य का इतना ज्ञान नहीं.. कुछ नया पढ़ने और जानने को मिला... बहुत अच्छा लगा। सराहनीय सृजन मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरा प्रयास सार्थक हुआ आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से… स्नेहिल आभार कामिनी जी 🌹🙏

      हटाएं
  9. बहुत ही उम्दा सृजन, मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
  10. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी !

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी।

      हटाएं
  12. वाह ... बहुत सुन्दर रीती काल के समय का भी कुछ परिचय मिला पोस्ट पर आने के बाद ...

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर सृजन और प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह बहुत ही उम्दा व शानदार सृजन मीना दी

    जवाब देंहटाएं
  15. रीतिकालीन सृजन पर आधारित बहुत ही लाजवाब सृजन किया है आपने...सुन्दर संदेश प्रद भी।
    आ.कुसुम जी से कवि गंग के दोहे हैं ये भी प्राप्त हुआ
    बहुत बहुत बधाई एवं आभार ज्ञानवर्धन हेतु।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रयास सार्थक हुआ आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से… स्नेहिल आभार सुधा जी 🌹🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"