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सोमवार, 18 जुलाई 2022

“मैं”




मैंने तुमको समझा इतना

गागर के पानी के जितना

इन्द्र धनुष के सात रंग से

ले कर एक अपना सा रंग


अपनी चादर बुन लेती हूँ 

खुद की धुन में जी लेती हूँ 


सागर लहरों की हलचल में

बूँदों की रिमझिम सरगम में

घन बीच गरजती बिजली में

अपने मनचाहे की ख़ातिर 


मैं नीरवता सुन लेती हूँ 

अपने मन की कर लेती हूँ 


माया के बंधन में उलझा

घनघोर तमस में दीपक सा 

नश्वरता बीच अमरता सा

सुखद सलोना क्षणभंगुर 


 कुछ अनचीन्हा चुन लेती हूँ 

अनमोल भाव गुन लेती हूँ 


***



22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 19 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. “पाँच लिंकों का आनन्द” में सृजन को सम्मिलित करने के आमन्त्रण के लिए आपका हृदयतल से आभार । सादर..,

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह वाह! सुंदर भाव अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. साराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ. ओंकार सिंह ‘विवेक’ जी ।

      हटाएं
  4. वाह !!! बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । अनचीन्हा चुन लेती हूँ । 👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल सराहना ने मेरे सृजन का मान बढ़ाया । हृदयतल से असीम आभार आ.दीदी ! सस्नेह सादर वन्दे 🙏

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी !

      हटाएं
  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-7-22}
    को सैनिकों की बेटियाँ"(चर्चा अंक 4495)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  7. चर्चा मंच की कल की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के आमन्त्रण के लिए हृदयतल से आभार कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हार्दिक आभार 🙏

      हटाएं
  9. माया के बंधन में उलझा
    घनघोर तमस में दीपक सा
    नश्वरता बीच अमरता सा
    सुखद सलोना क्षणभंगुर

    कुछ अनचीन्हा चुन लेती हूँ
    अनमोल भाव गुन लेती हूँ
    .. बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना ।


    ***

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !

      हटाएं
  10. ख़ुद की धुन में जीना,
    ज़िंदगी घूँट-घूँट पीना
    रूखे-सूखे चिन्हे पदचिह्न
    अन्चीहा पल पशमीना।
    -----
    जी दी ,कितनी सहजता और सरलता से शब्दों को पिरोया है आपने।
    बेहद सुंदर और भावपूर्ण रचना ।
    ....।।
    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।आपका हृदय से असीम आभार श्वेता ! सस्नेह वन्दे !

      हटाएं
  11. कितने सुन्दर भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार अनुज ।

      हटाएं
  12. वाह!वाह! बहुत सुंदर सृजन।
    झरने सा बहता।
    लाज़वाब 👌

    जवाब देंहटाएं
  13. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता ! सस्नेह…,

    जवाब देंहटाएं
  14. अभिभूत कर देने वाली काव्य-रचना। शिल्प एवं भाव, दोनों में अद्वितीय।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार जितेन्द्र जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"