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शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

"कशमकश"

छन्द अलंकारों से सजी कविता
मुझे सोलह श्रृंगार युक्त दुल्हन
तो कभी बोन्सई की
वाटिका समान लगती है ।

कोमलकान्त पदावली और
मात्राओं-वर्णों की गणना
उपमेय-उपमान ,
यति-गति के नियम
भाषा सौष्ठव सहित
छन्दों की संकल्पना ।

कोमल इतनी की छूने से
मुरझा जाने का भरम पलता है
नर्म नव कलिका सी
टूट जाने का डर लगता है ।

मुझे कविता कानन में
बहती बयार तो कभी
निर्मल निर्झर समान लगती है
नियम में बाँधू तो जटिल आंकड़ों की
संरचना जान पड़ती  है ।

XXXXX

3 टिप्‍पणियां:

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"