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रविवार, 10 सितंबर 2017

“त्रिवेणी"

(This image has been taken from google)
( 1 )

प्रकृति में रूक्षता और कठोरता दिखती है
ओस कण तो मृदुल और तरल होते हैं ।

लगता है कभी‎ अपनापा बड़ा गहरा रहा होगा ।।

( 2 )

ताल के सोये पानी को कंकड़ी मार
शरारती बच्चे ने गहरी नीन्द से जगा दिया ।

तुम  से मिल के भी  बस यूं ही हलचल हो जाती है।।

( 3 )

बहुत सारे  फूल  हवाओं के झकोरों संग
झुण्ड के झुण्ड शाखों को छोड़ कर चल दिए ।
शायद अस्तित्व‎ की तलाश में ।।

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12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह....बहुत सुंदर लाज़वाब त्रिवेणी मीना जी।👌👌
    अर्थ भाव सब समेटे हुये सुंदर रचना आपकी।

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  2. लेखन कार्य की सराहना के लिए अत्यन्त आभार श्वेता जी .

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  3. बहुत खूब ... त्रिवेनियों के मास्ध्यम से कितनी गहरी बात कही जाती है ... बहुत खूब ...

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  4. उत्साह‎वर्धन करती सराहना के लिए बहुत बहुत‎ धन्यवाद दिगम्बर जी ।।

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  5. ज्योति जी, "मंथन" पर आपका हृदय से स्वागत है। आपकी सराहना हेतु बहुत बहुत‎ धन्यवाद ।

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  6. मार्मिकता से लबरेज़ क्षणिकाओं की त्रिवेणी अलग-अलग धाराओं से बहकर भागीरथी-सी निर्मल धारा बनकर हमारे दिलों को पावन स्नान कराती है ,भावों से सराबोर करती है।
    बधाई मीना जी ऐसी त्रिवेणी से पाठकों को परिचित कराने के लिए।

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  7. दरअसल‎ गुलजार साहब की त्रिवेणियाँ पढ़ी थी कभी‎ तो मन किया कोशिश कर के देखूं इस डगर पर चलने की। रचनात्मकता शैली पर आप गुणीजनो की प्रतिक्रिया‎ से उत्साह‎वर्धन हुआ।अत्यन्त आभार रविन्द्र सिंह जी ।

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  8. टीस सी छोडती हुई गहरी बात उफ़ ... कैसे सोच लेती हैं इतना सब कुछ :)

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  9. रचनात्मक शैली‎ को मान देने के लिए बहुत‎ बहुत‎ धन्यवाद संजय जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"