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रविवार, 21 जुलाई 2019

"चोका"

(This image has been taken from Google)

सोचों मेंं डूबा
देख सृष्टि के रंग
माटी का लाल
कहीं बरस गया
तो अतिवृष्टि
कहीं भूली डगर
तो अनावृष्टि
पृथ्वी की विषमता
मन की पीड़ा
तोड़ कूल किनारे
बन्द दृगों से
बन के अश्रु बूँद 
बह निकली
आहत होता मन
तल्खी पा कर
घनीभूत सी पीड़ा
हिय में आई
अकुलाहट छाई
व्यर्थ सा लागे
दुविधा में उलझा
खुशियों का सपना

xxxxxxx



15 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति आज सायं 5:30 बजे प्रकाशित होने वाले सांध्य दैनिक 'मुखरित मौन' https://mannkepaankhi.blogspot.com/ ब्लॉग में सम्मिलित की गयी है। चर्चा हेतु आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

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    1. रचना को मान देने हेतु हृदय से आभार रविंद्र जी !

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  2. आभार दी ! आपके सुझाव महत्वपूर्ण हैं मेरे लिए.. ब्लॉग पर अलग अलग समय में हाइकु, तांका.चोका और सेदोका पोस्ट करते समय शीर्षक डालती हूँ ..मुझे शीर्षक विहीन रचना अधूरी सी लगती है ।

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    उत्तर
    1. त्रुटि सुधार कर लिया है दी 🙏 आभार मार्ग निर्देशन के लिए । सादर...

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  3. बहुत शानदार मीना जी ।चोका विधा की रचना संवेदना से भरपूर प्राकृतिक विषमता का सुंदर चित्रण।

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    1. आपकी स्नेहिल और ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन
      करती है कुसुम जी ! हृदय से आभार.. सस्नेह !

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  4. प्रिय मीना जी , एक और सुंदर भावपूर्ण सृजन धरती माँ की आकुलता के नाम | सस्नेह शुभकामनायें आपके लिए |

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    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल और अपनत्व भरी हौसला अफजाई सृजन को सार्थकता देती है प्रिय रेणु जी ! आपका स्नेह व शुभकामनाएं मेरे लिए अमूल्य हैं ।

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  5. मानना पड़ेगा आपकी लेखनी को...शब्द आपके किन्तु बातें सबके मन की

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    उत्तर
    1. लेखन सफल और सार्थक हुआ.. रचना के भावों की सराहना के लिए हृदय से आभार संजय जी !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"