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गुरुवार, 7 नवंबर 2019

"क्षणिकाएं"

(1)
बेसबब नंगे पाँव ...
भागती सी जिन्दगी
कट रही है बस यूं …
जैसे एक पखेरु 
लक्ष्यहीन उड़ान में...
समय के बटुए से
रेजगारी खर्च रहा हो …

(2)

नेह के धागों से 
बुनी थी वह  कमीज
वक्त के साथ...
नेह के तन्तु
सूखते गए और….
कमीज की सींवन दुर्बल
एक युग  के बाद
धूल अटी गठरी से ...
उस कमीज का टुकड़ा
घनघनाया…
फोन की घंटी के रुप में...

★★★

20 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के यथार्थ को दर्शाती संवेदनशील रचनाएँ
    प्रणाम दी।

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार शशि भाई ।

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में साझा करने के लिए आभार दिग्विजय जी ।

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  3. निराशा से भरी सुन्दर क्षणिकाएं मीनाजी! जिगर मुरादाबादी का एक शेर याद आ गया -
    यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ, तेरे बगैर,
    जैसे कोई गुनाह, किये जा रहा हूँ मैं.

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ जैसवाल जी । हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार ।

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  4. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति मीना जी ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह नमस्कार कामिनी बहन । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है ।

      हटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    -अनीता लागुरी 'अनु'

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरे सृजन को चर्चा मंच में साझा करने के लिए हार्दिक आभार अनु जी ।

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी

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    उत्तर
    1. हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार अनुराधा
      जी ।

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  8. भूली बिसरी सच्ची मोहब्बत आ ही जाती है एक दिन।
    कुछ तो हम बेसबब ही कर रहे हैं
    जैसे आदत पड़ी हो करने की।
    कमाल की क्षणिकाएं।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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  9. सृजन की सराहना हेतु हार्दिक आभार रोहित जी ।

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  10. बहुत खूब ... दमदार ...
    दोनों क्षणिकाएं जीवन के रोष्टों के इर्द-गिर्द ... उनके ताने बाने को बाखूबी बयान करती हैं ...

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।

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  11. बिना मकसद की ज़िन्दगी को बाखूबी दर्शाती है पहली क्षणिका। वक्त भले ही रिश्तों में दूरियाँ पैदा कर दें लेकिन हमारी एक छोटी सी कोशिश ही उस रिश्ते को दोबारा जीवित कर देती है। जैसे कई बार पानी की कमी से मुरझाते हुए पौधा मृतप्राय तो हो जाता है लेकिन पानी की कुछ बूँदे ही उसके कृशकाय शरीर में ऊर्जा का संचार कर देती हैं और वह खिलखिलाने लगता है।  बशर्ते वह बूँदे थोड़े थोड़े अंतराल में बरसती रहें।सुंदर क्षणिकाएं।

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    उत्तर
    1. विस्तृत व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से क्षणिकाओं को गति और सार्थकता मिली विकास जी । आपका तहेदिल से शुक्रिया ।

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  12. क्या बात है...दमदार बहुत बढ़िया...काफी कुछ कह दिया आपने !

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"