तुम्हारे अपनों के साथ
पाँच दिन तुम से
दूर रह कर
बिताने के नाम पर मन की
अकुलाहट….
सांझ के समय
बढ़ जाया करती थी
और ले जाती थी मुझे
छत के एक छोर पर...
जहाँ से दिखता था
अपने गांव की पहाड़ी का कोना…
मंदिर की बुर्ज़ पर
टिमटिमाते बल्ब की रोशनी
बाँध देती थी मेरे मन को
अपने घर के आंगन से….
एक बल्ब वहाँ भी जला करता था
जब सांझ को
एक कमरे को खोल ...
ढेर सारे बटनों के बीच
स्विचबोर्ड पर
तुम्हारी अभ्यस्त अंगुलियां
दबा देती थी कोई बटन
उजाला छिटक जाया करता था
आंगन में...
मेरे मन की डोर उस आंगन में
डोलती तुम से बंधी थी माँ !
उन पाँच दिनों में
नन्हीं अंगुलियों पर
हर सांझ छत के कोने पर
खड़े हो गिनती थी दिन
एक , दो , तीन , .., ....,
ये बात कभी तुम से
साझा नहीं कर पाई मैं
मगर जब भी देखती हूँ
किसी पहाड़ी की बुर्ज
पर कोई मंदिर
उसे देख कर
वो बात
स्मृतियों के झरोखों से
झांक कर तुम्हारी
बहुत याद दिलाती है
माँ !!!
नि:शब्द... अंतस्थ को उकेरती अभिव्यक्ति आदरणीया मीना दीदी. लाज़वाब..
जवाब देंहटाएंसादर
त्वरित और ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ अनुजा ! स्नेहिल आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण ,एक एक शब्द पढ़ते हुए कुछ अलग अनुभूति हो रही थी और आखिरी शब्द " माँ " पढ़ते ही मन अत्यंत भावुक हो गया ,अंतःकरण को छू गई आपकी रचना ,सादर नमन आपको मीना जी
जवाब देंहटाएंमेरा लेखन सार्थक हो गया आपकी सराहना सम्पन्न ऊर्जावान
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया से...हृदय की असीम गहराइयों से सस्नेह आभार कामिनी जी । सादर वन्दे !
कभी पाँच दिन जिनसे दूर होकर बिताने मुश्किल होते थे आज जीवन भर के लिए उनसे दूर(ससुराल) में हैं हर पल उनकी यादों के साथ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावप्रवण हृदयस्पर्शी सृजन।
लेखन सार्थक हुआ सुधा जी आपकी अनमोल ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया ने सृजन को अर्थ दिया । स्नेहिल आभार..
हटाएंसार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंममतामयी माँ को नमन।
रचना को मान देने के लिए सादर आभार सर !
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(११-०४-२०२०) को 'दायित्व' (चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर !
हटाएंमाँ को समर्पित एक हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति। दरअसल माँ ईश्वर का साक्षात रूप है जो हमारे साथ होता है। विशिष्ट बिम्ब शैली में उद्दात भाव रचना को उत्कृष्ट श्रेणी में ले जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से रचना का मान बढ़ा और लेखनी सफल हुई । हार्दिक आभार आ.रविंद्र जी ।
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी सृजन दी।.मन तरल हो गया दी।
जवाब देंहटाएंमाँ शब्द ही ममत्व का संपूर्ण सार है।
बहुत सुंदर शब्द संयोजन एवं भाव अति उत्कृष्ट।
सादर।
हृदयतल से स्नेहिल आभार श्वेता ! आपकी उपस्थिति सृजन को सार्थकता और मुझे सदैव हर्ष प्रदान करती है ।
हटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता सुधीर जी !
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली... बहुत बहुत आभार सखी !
हटाएंदिल को छूती बहुत सुंदर रचना,मीना दी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ज्योति जी !
हटाएंदिल को छूती सुन्दर अभिव्यक्ति.. आखिर की पंक्ति पढ़कर मन भावुक हो जाता है.. सुन्दर सृजन...
जवाब देंहटाएंआपकी मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा विकास जी ! हृदय से असीम आभार ।
हटाएं