Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

"ख़्वाहिश"

एक अहसास..

सर्द सी छुवन लिये

स्वेटर के रेशों को चीर

 समा गया रूह में

सिहरन सी भर कर

न्यूज़ में..

 अभी-अभी पढ़ा-

पहाड़ों पर बर्फ़ गिरी है

तभी मैं कहूँ ...

अंगुलियाँ और नाक

यूं सुन्न से क्यों है...

छत पर हवाओं में

घुली ठंडी धूप में 

नजर पसारी

 तो पाया

गेहूँ की बालियों पर

 भी आज…

बरफ की परत जमी है

और सरसों का

 मुख मंडल ज़र्द

मगर..

धुला-धुला सा है

लगता तो यहीं है

 इस बार के बसंत ने

दस्तक दे दी है

शीत के दरवाजे पर

अचानक ...

एक सूर्य किरण सी

हूक जागी मन में

एक ख़्वाहिश

कि...

कुदरत की 

बर्फ़ीली परतों सी

अंतस् में जमी परतें भी 

इस बार..

पिघल ही जायें

***


36 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब! भावातिरेक हर पंक्ति सच एहसास से लबरेज।
    अप्रतिम मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी ।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सधु चन्द्र जी ।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।

      हटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०१-२०२१) को 'ख़्वाहिश'(चर्चा अंक- ३९४८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता ।

    जवाब देंहटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 16 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

    जवाब देंहटाएं
  7. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता ।

    जवाब देंहटाएं
  8. हूक जागी मन में

    एक ख़्वाहिश

    कि...

    कुदरत की

    बर्फ़ीली परतों सी

    अंतस् में जमी परतें भी

    इस बार..

    पिघल ही जायें
    वाह बेहतरीन रचना सखी 👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी🙏🌹🙏

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी।

      हटाएं
  10. इन नरम नरम एहसासों से अंतस में कुछ पिघल रहा है और सर्द सिहरन समेटे जा रही है । बस एक हल्की सी कंपकंपी ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से रचना की मुखरता मिली...हृदय से बहुत बहुत आभार अमृता जी !

      हटाएं
  11. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी🙏🌹🙏

    जवाब देंहटाएं
  12. शरद ऋतु की मनोहारी ठिठुरन और सिहरन महसूस ही कर रही थी कि अचानक खिलखिलाते बसंत ने दस्तक दे दी और मन खुश बाग़बाग हो गया..बहुत बढ़िया..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से रचना की मुखरता मिली...हृदय से बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी🙏🌹🙏

      हटाएं
  13. एक सूर्य किरण सी

    हूक जागी मन में

    एक ख़्वाहिश

    कि...

    कुदरत की

    बर्फ़ीली परतों सी

    अंतस् में जमी परतें भी

    इस बार..

    पिघल ही जायें - - प्रभावशाली लेखन शैली मुग्ध करती हुई - - साधुवाद आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला हृदयतल से आभार सर🙏

      हटाएं
  14. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!

      हटाएं
  15. हर मौसम का अपना रँग है ... अपनी विशेषता है ...
    पर अति में बहुत कुछ यद् आ ही जाता है ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  16. छोटी-छोटी पंक्तियों में सुंदर भावाभिव्यक्ति । अभिनंदन मीना जी ।

    जवाब देंहटाएं
  17. हार्दिक आभार जितेन्द्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत खूब मीना जी!!. आशा संसार में जीवन और जीवट दोनो का आधार है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय रेणु जी 🙏🌹🙏

      हटाएं
  19. और सरसों का

    मुख मंडल ज़र्द

    मगर..

    धुला-धुला सा है बहुत बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह!! बहुत ही सुंदर भवपूर्ण रचना,सादर नमन मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  21. सादन नमन सहित हार्दिक आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"