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बुधवार, 11 मई 2022

“ख़ामोशी”



उदास हैं चाँद-तारे

साँवली सी रात में

धरती के

जुगनुओं जैसे जगमग

 करते लैम्पपोस्ट भी 

असफल हैं 

उनको बाँटने में 

 मुस्कुराहट

 

मिलन-बिछोह के

राज हैं उनके भी

 अपने…

घर की बात घर में रहे

यही सोच कर

बादलों ने भी डाल दिया 

नमीयुक्त 

झीना सा आवरण 

उनकी उदास सी 

रिक्तता पर


उनींदी सी करवट

के साथ 

दिलोदिमाग़ में

 कौंधती है यही बात

कि…, क्यों 

 आज नहीं दिखी

नीलगगन के आंगन में

रोज़ सरीखी

चंचल सी सुगबुगाहट


***


26 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी !

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।

      हटाएं
  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 12 मई 2022 को 'जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में ' (चर्चा अंक 4428 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा मंच की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. उदास हैं चाँद-तारे

    साँवली सी रात में

    बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुज ।

      हटाएं
  6. प्रकृति भी मन के भावों के अनुसार अपना रंग-ढंग बदल लेती है या हम ही उसे जैसा देखना चाहते हैं वैसा देख लेते हैं, भूखे को चाँद में रोटी नजर आती है और प्रेमी को किसी का मुखड़ा !

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया ,हार्दिक आभार अनीता जी !

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  8. खामोशी की अपनी एक अलग ही भाषा होती है, जिसे हर कोई नहीं पढ पाता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को मान प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कविता जी !

      हटाएं
  9. मिलन-बिछोह के

    राज हैं उनके भी

    अपने…

    घर की बात घर में रहे

    यही सोच कर

    बादलों ने भी डाल दिया

    नमीयुक्त

    झीना सा आवरण

    उनकी उदास सी

    रिक्तता पर

    कभी-कभी चाँद-तारे भी उदास हो जाते है जब उन्हें लगता है कि -धरती पर उनका कोई "प्यारा"उदास है। मार्मिक अभिव्यक्ति मीना जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  10. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार कामिनी जी ! सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  11. घर की बात घर में रहे
    यही सोच कर
    बादलों ने भी डाल दिया
    नमीयुक्त
    झीना सा आवरण
    उनकी उदास सी
    रिक्तता पर।
    मानवीय भाव और व्यवहार को प्रतीकात्मक शैली में बखूबी ढ़ाल दिया आपने मीना जी गहन भाव लिए शानदार सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  12. सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला , हार्दिक आभार कुसुम जी!

    जवाब देंहटाएं
  13. कई बार मन मंथन करता है और यह ज़रूरी भी है ...
    प्राकृति के माध्यम से कई बातों को कहने का सफल प्रयास है ये रचना ... लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी को मान मिला । हार्दिक आभार आपका ।

      हटाएं
  14. कभी यूँ ही साँसें बोझिल हो जाती हैं, यूँ ही आँखों में नमी उतर आती है तो सिर्फ हृदय ही जानता है ... उस चाँद की इस दशा को भी।

    जवाब देंहटाएं
  15. आपकी नेहपगी सारगर्भित प्रतिक्रिया पा कर सृजन को सार्थकता मिली । सस्नेह वन्दे अमृता जी !

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  16. उनींदी सी करवट
    के साथ
    दिलोदिमाग़ में
    कौंधती है यही बात
    कि…, क्यों
    आज नहीं दिखी
    नीलगगन के आंगन में
    रोज़ सरीखी
    चंचल सी सुगबुगाहट...
    जीवन के अहसास को परिभाषित करती सराहनीय अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला , हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !

      हटाएं
  17. मन के भावों के अनुकूल ही सब कुछ दिखाने और महसूस होने लगता है । सुंदर रचना ।

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    उत्तर
    1. सत्य कथन मैम ! प्रकृति जल सदृश प्रतिबिंब को प्रतिबिंबित करती है । बहुत बहुत आभार 🙏 आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।

      हटाएं
  18. हृदयस्पर्शी पंक्तियों से सुसज्जित सराहनीय रचना....

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  19. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार अनुज संजय जी ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"