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बुधवार, 18 जनवरी 2017

“गुजारिश”

गेसुओं में फिरती अंगुलियों की गर्माहट ,
दबे सुर में लोरी की गुनगुनाहट ।
आँखों में जलन सी भरी है ,
एक अंजुरी भर नींद की भेजो ना ।।
भूली-बिसरी यादों की  ,
गाँठ लगी गठरी ।
घर के किसी कोने में ,
बेतरतीब सी रखी है ।।
एक गुजारिश है तुमसे  ,
मेरी अनमोल सी थाती को ।
मेरे अहसासों से भरी
नेह भरी पाती को ।
वक्त की गर्द से निकाल
मुझ तक भेजो ना ।।

XXXXX

4 टिप्‍पणियां:

  1. रचना‎ सराहना के लिए‎ धन्यवाद पुरुषोत्तम जी .

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  2. सुन्दर भावों को प्रभावी शब्द दिए हैं आपने.खूबसूरत

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    1. ब्लॉग की बहुत सी रचनाएँ पढ़ने ..,अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया‎एँ प्रकट करने के लिए‎ मैं आपका जितना आभार प्रकट‎ करूं कम होगा . अपना बहुमूल्य समय मेरी रचनाओं को देने के लिए‎ पुन: बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"