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गीली सी धूप में
फूलों की पंखुड़ियां
अलसायी सी
आँखें खोलती हैं ।
ओस का मोती भी
गुलाब की देह पर
थरथराता सा
अस्तित्व तलाशता है ।
कोहरे की चादर में
लिपटे घर-द्वार और
पगडंडियां भी सहमी
ठिठुरी सी लगती हैं ।
रक्तिम प्रभा मण्डल में
मन्थर गति से उदित
मार्तण्ड भी शीत के कोप से
कांपते से दिखते हैं ।
XXXXX
वाह! बिंबों और प्रतीकों में ख़ूबसूरती से भावों को लपेटे हुए आई है एक ताज़ातरीन अभिव्यक्ति आपकी शीत ऋतु का नर्म एहसास लिए।
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।
ऊर्जावान एवं शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार रविन्द्र सिंह जी .
हटाएंबहुत मोहक कविता शरद ऋतू के स्वागत में
जवाब देंहटाएंशरद ऋतु की मनोवृत्तियो को; उसके बदलाव और सामाजिक स्तर पर हुए परिवर्तन को रेखांकित करती ....:)
सुन्दर व्याख्यात्मक ऊर्जावान टिप्पणी हेतु तहेदिल से धन्यवाद संजय जी .
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआप की रचना को शुक्रवार 22 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
नमस्ते श्वेता जी !
हटाएं"पाँच लिंकों का आनन्द" पर मेरी रचना को सम्मिलित कर सम्मान प्रदान करने के लिए हृदयतल से आभार .
वाहःह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
आभार लोकेश जी .
हटाएंशीत ऋतु के समान ही मन को शीतलता व कोमलता प्रदान करती सुंदर रचना ! शब्द शिल्प बहुत सुंदर है !
जवाब देंहटाएंसराहनीय उत्साहवर्धित करती टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी .
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार नीतू जी .
हटाएंवाह ! बहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुति आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद राजेश जी .
हटाएंवाह!!सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंशुभा जी हार्दिक धन्यवाद .
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार जोशी जी .
हटाएंखूबसूरत शब्द विन्यास..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार पम्मी जी .
हटाएंशीत ऋतू को प्रतीकात्मक ढंग से परिभाषित करती सुंदर रचना -- बधाई एवं शुभकामना आदरणीय मीना जी --सस्नेह
जवाब देंहटाएंस्नेहिल सी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी .
हटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
लाजवाब...
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी .
हटाएंशीत की कल्पना में अनेक बिम्ब उभारे हैं इस रचना में ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही ठिठुरती हुयी रचना ... लाजवाब ...
बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी .
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-12-2020) को "बीत रहा है साल पुराना, कल की बातें छोड़ो" (चर्चा अंक-3931) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चा मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित कर मान प्रदान करने के लिए हृदयतल से आभार सर !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला। हार्दिक आभार सर!
हटाएंवाह मीना जी...ओस का मोती भी
जवाब देंहटाएंगुलाब की देह पर
थरथराता सा
अस्तित्व तलाशता है...क्या खूब लिखा है...''ओस और गुलाब'' के बहाने जीवन और इसके अस्तित्व को पूरा बखान दिया आपने
स्नेहिल सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..हृदयतल से आभार अलकनंदा जी!
हटाएंकोहरे की चादर में
जवाब देंहटाएंलिपटे घर-द्वार और
पगडंडियां भी सहमी
ठिठुरी सी लगती हैं ।
बहुत सुंदर शीतऋतु वर्णन 🌹🙏🌹