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गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

“शीत ऋतु”

(This image has been taken from google)

गीली सी धूप में
फूलों की पंखुड़ियां
अलसायी सी
आँखें खोलती हैं ।

ओस का मोती भी
गुलाब की देह पर
थरथराता सा
अस्तित्व तलाश‎ता है ।

कोहरे की चादर में
लिपटे घर-द्वार और
पगडंडियां भी सहमी
ठिठुरी सी लगती हैं ।

रक्तिम प्रभा मण्डल  में
मन्थर गति से उदित
मार्तण्ड भी शीत के कोप से
कांपते से दिखते हैं ।

   XXXXX

33 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बिंबों और प्रतीकों में ख़ूबसूरती से भावों को लपेटे हुए आई है एक ताज़ातरीन अभिव्यक्ति आपकी शीत ऋतु का नर्म एहसास लिए।
    बधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

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    1. ऊर्जा‎वान एवं शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया‎ हेतु हृदयतल से आभार रविन्द्र सिंह जी .

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  2. बहुत मोहक कविता शरद ऋतू के स्वागत में
    शरद ऋतु की मनोवृत्तियो को; उसके बदलाव और सामाजिक स्तर पर हुए परिवर्तन को रेखांकित करती ....:)

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    1. सुन्दर‎ व्याख्या‎त्मक ऊर्जावान टिप्पणी हेतु तहेदिल से धन्यवाद संजय जी .

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  3. जी नमस्ते,
    आप की रचना को शुक्रवार 22 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. नमस्ते श्वेता जी !
      "पाँच लिंकों का आनन्द‎" पर मेरी रचना को सम्मिलित कर सम्मान‎ प्रदान करने के लिए‎ हृदयतल से आभार .

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  4. शीत ऋतु के समान ही मन को शीतलता व कोमलता प्रदान करती सुंदर रचना ! शब्द शिल्प बहुत सुंदर है !

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    1. सराहनीय उत्साहवर्धित करती टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी .

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  5. वाह ! बहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुति आदरणीया ।

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  6. शीत ऋतू को प्रतीकात्मक ढंग से परिभाषित करती सुंदर रचना -- बधाई एवं शुभकामना आदरणीय मीना जी --सस्नेह

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    उत्तर
    1. स्नेहिल सी प्रतिक्रिया‎ के लिए‎ बहुत बहुत‎ धन्यवाद रेणु जी .

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  7. बहुत सुन्दर....
    वाह!!!
    लाजवाब...

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  8. शीत की कल्पना में अनेक बिम्ब उभारे हैं इस रचना में ...
    बहुत ही ठिठुरती हुयी रचना ... लाजवाब ...

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  9. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-12-2020) को "बीत रहा है साल पुराना, कल की बातें छोड़ो"  (चर्चा अंक-3931)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित कर मान‎ प्रदान करने के लिए‎ हृदयतल से आभार सर !

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  10. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला। हार्दिक आभार सर!

      हटाएं
  11. वाह मीना जी...ओस का मोती भी
    गुलाब की देह पर
    थरथराता सा
    अस्तित्व तलाश‎ता है...क्या खूब ल‍िखा है...''ओस और गुलाब'' के बहाने जीवन और इसके अस्त‍ित्व को पूरा बखान द‍िया आपने

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    उत्तर
    1. स्नेहिल सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..हृदयतल से आभार अलकनंदा जी!

      हटाएं
  12. कोहरे की चादर में
    लिपटे घर-द्वार और
    पगडंडियां भी सहमी
    ठिठुरी सी लगती हैं ।

    बहुत सुंदर शीतऋतु वर्णन 🌹🙏🌹

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"