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बुधवार, 25 अप्रैल 2018

"प्रकृति" (हाइकु)


ढलती सांझ
घिर आए बादल
भीगी सी रातें ।            

भोर के साथ
करते कलरव
पेड़ों पे पंछी ।

ओस की बूदें
मकड़ी के जालों में
मोती सी गुंथी ।

छाया उल्लास
पुलकित वसुधा
अम्बर हँसा ।

ये सारे दृश्य‎
सौगात प्रकृति की
खो नही जाए ।

बढ़ी आबादी
सिमटी कुदरत
चिन्ता जनक ।

सृष्टि की रक्षा
कर्तव्य मनुष्य का
होना चाहिए।

XXXXX

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुहाने वातावरण को देखकर आपके मन में आने वाली लाइनों को लिखने और प्रकृति के सौन्दर्यभाव की चरम स्थिति का अनुभव कराते सभी हाइकु कमाल के मीना जी

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    उत्तर
    1. आपकी सराहनीय उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया‎ मेरे लिए अनमोल है संजय जी. बहुत बहुत‎ आभार.

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्ते श्वेता जी,
      "पांच लिंकों का आनन्द" के निमन्त्रण के लिए
      और मेरी रचना साझा कर मान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद.

      हटाएं
  3. प्रकृति को समर्पित सभी हाइकू गागर में सागर है |सादर --

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार ध्रुव सिंह जी "लोकतंत्र'' संवाद मंच पर मेरी रचना को मान देने हेतु .

    जवाब देंहटाएं
  6. प्राकृति के रंग समेटे मधुर हाइकू हैं सभी ...
    बधाई ...

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"