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शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

"माहिया" ( स्वीकारोक्ति )

(1) बचपन कब बीत गया
इस के जाने से
मन मेरा रीत गया

(2) मैं तो बस ये जानूं
तुम को  ही अपना
सच्चा साथी मानूं

(3) लम्बी बातें कितनी
नापूं तो निकले
गहरी सागर जितनी

(4) मैं याद करूं क्या क्या
बीच हमारे थीं
सौ जन्मों की बाधा

(5) छोटी छोटी बातें
अब लगती हैं सब
जन्मों की सौगातें

XXXXX

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... गज़ब के माहिए ...
    पंजाब के आँचल से निकली इस लोक गीत की शैली लाजवाब है ...
    बहुत बधाई ...

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    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी ।

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  2. बहुत उम्दा.
    सच्चे इश्क में छोटीछोटी बाते या नोक झोंक सौगाते ही तो होती है.
    हद पार इश्क 

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    1. सारगर्भित उत्साहवर्धित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद रोहिताश्व जी ।

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  3. एक एक माहिए ...को खुबसूरत शब्दों में पिरोया है मीना जी

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    1. आपकी हौसला अफजाई करती प्रतिक्रिया सदैव
      उत्साहवर्धन करती हैं संजय जी ।

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  4. प्रिय मीना जी -- बहुत सुंदर माहिया रचा अपने | गागर में सागर सरीखा !!!!!! शुभकामनायें |

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    1. आपकी स्नेहिल और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया रेणु जी ।

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  5. बहुत सुंदर माहिया लिखा आपने मीना जी ... बधाई

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    1. हौसला अफजाई के लिएबहुत बहुत आभार आपका 🙏🙏

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/10/2018 की बुलेटिन, निन्यानबे का फेर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. इस मान के लिए तहेदिल से धन्यवाद शिवम् जी ।

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  7. लाजवाब माहिया!!!
    सुन्दर शब्दविन्यास...

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    1. हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"