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शनिवार, 5 जनवरी 2019

"आशियाना"


बेगाने घरों  में रह कर
मुझे कैसा लगता है ।
ख्वाबों में आकर अक्सर
मेरा हाल पूछता है ।
कहाँ रहती हूँ आजकल
मुझ से मेरा घर पूछता है ।

अपने  जो थे वो सब
तिनकों से बिखर गए ।
दुनिया के बाजार में
अजनबी ही बचे रह गए ।
उन सब के बीच फिर भी
अपनों सी बात करता  है ।

खुश हूँ ना मैं खुद से
मुस्कुरा के पूछता है ।
अपने दुख भूल कर
हाल मेरे पूछता है ।
मुझ से मेरा अपना घर
बस ख्वाबों में मिलता है ।

  XXXXX

26 टिप्‍पणियां:

  1. अपना घर अपना ही होता हैं। बहुत सुंदर रचना, मीना दी।

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  2. बहुत सुंदर रचना,एक सपना अपना आशियाना

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  3. मुझ से मेरा अपना घर
    बस ख्वाबों में मिलता है ,क्या खूब...... ,मार्मिक..... सादर स्नेह

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    1. कामिनी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार। सस्नेह ।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/01/2019 की बुलेटिन, " टाइगर पटौदी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    उत्तर
    1. ब्लॉग बुलेटिन मे मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए तहेदिल से आभार शिवम् जी ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ७ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. बहुत बहुत आभार श्वेता जी "पांच लिंकों का आनन्द"के सोमवारीय विशेषांक मे मेरी रचना को शामिल करने के लिए ।

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  7. मेरा पुराना दर्द अपनी इस ख़ूबसूरत कविता में क्यों उकेर रही हैं मीना जी?
    ज़्यादातर ज़िन्दगी किराए के आशियाने में गुज़ारने के बाद जब अपना आशियाना मिला तो ख़्वाब देखने की अपनी उम्र ही बाक़ी नहीं रही !

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  8. आपका दर्द उकेरा उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ 🙏🙏 पर क्या करूँ यह विषय ही ऐसा है कि आपकी व्यथा स्वयं की बन कर शब्दों में ढल ही जाती है । कई बार अनगढ़ शब्दों में पैतृक घर की यादों को उकेरने का प्रयास किया है । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया सदैव स्मरण रहेगी ।

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  9. बेगाने घरों में रह कर
    मुझे कैसा लगता है ।
    मीना जी एहसास बदलते ही नज़ारा बदल जाता है."
    कविता बहुत ही खूबसूरत है... सामान्य होते हुए भी असामान्य बिम्ब... सरल होते हुए भी गहरे अर्थ लिए हुए.

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    1. आपकी सारगर्भित सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजनात्मकता को सार्थकता मिली संजय जी । आपके अनमोल शब्द सदैव प्रेरणास्पद और बेहतर लिखने को प्रेरित करते हैं ।

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  10. मर्मस्पर्शी रचना मीना जी!
    पुरानी स्मृतियों का आशियाना कब भुलाये भुलता है।
    साथ ही मानव मात्र की अपने आशियाने की ललक ..
    छोटा हो बड़ा हो बस मेरा हो।
    सुंदर भावों से सजी रचना।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार कुसुम जी सारगर्भित और सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ।

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  11. समय की इस गति को कौन रोक पाता है ...
    आज का अपना घर कल कहाँ रह पाता है ... फिर भी वो अपना ही होता है ... मर्म को छूती हुयी रचना ...

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  12. आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया सदैव लेखन हेतु संबल प्रदान करती है ।बहुत बहुत आभार नासवा जी ।

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  13. वाह!!बहुत खूबसूरत रचना मीना जी !

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    1. हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार शुभा जी ।

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  14. मुझ से मेरा अपना घर
    बस ख्वाबों में मिलता है ।
    बहुत ही सुन्दर ,हृदयस्पर्शी रचना...

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"