Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

सोमवार, 1 जुलाई 2019

"अभिव्यक्ति"

नदी के पाट सी
हो गई अभिव्यक्ति
अनुभूतियों के लिए
चिंतन के तार ...
उलझे-बिखरे से
दूर-दूर नजर आते हैं
सच ही तो कहा है किसी ने...
'सोच गहरी हो तो फैसले
कमजोर पड़ जाते हैं'
अपने साथ भी कुछ ऐसा ही है
शिल्प के बंधन की
खोज में दो और दो का
जोड़ उलझ गया और
पाँच का सिरा ढूंढ़ते हुए
दिन यूं ही ढल गया
नारियल की डाली से
लुकाछिपी करते
चाँद के साथ चाँदनी भी
थक हार कर
बादलों में छुप गई
शून्य मे ताकती आँखे
मुट्ठी भर नींद के
आगोश में झपक गई
आधे-अधूरे ख्वाब...
रात भर नींद में
नज्म लिखते रहे
बस डायरी के सफहे
खाली थे वे
वैसे के वैसे रह गए

   ********

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 02, 2019 को साझा की गई है पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को मंगलवार समूह पटल पर मान देने के लिए हृदय से आभार सखी ! सादर...

      हटाएं
  2. वाह मीना जी भाव विभोर कर गई आपकी अनुपम कृति।
    सच है, रात भर लिखी नज्म कभी कागज पर ढल ही नही पाती, वैसे ही शुरू करलो पर पहुंच कहीं और जाती है।
    बहुत सुंदर बहुत प्यारी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर सराहनीय रचना को सार्थकता प्रदान करती प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से स्नेहिल आभार कुसुम जी!!

      हटाएं
  3. शून्य मे ताकती आँखे
    मुट्ठी भर नींद के
    आगोश में झपक गई
    आधे-अधूरे ख्वाब...
    रात भर नींद में
    नज्म लिखते रहे
    बस डायरी के सफहे
    खाली थे वे
    वैसे के वैसे रह गए..बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. आधे-अधूरे ख्वाब...
    रात भर नींद में
    नज्म लिखते रहे
    बस डायरी के सफहे
    खाली थे वे
    वैसे के वैसे रह गए!!!!
    बहुत भावपूर्ण रचना प्रिय मीना जी | एकाकी मन कुछ भी सोच लेता है |हर पल को शब्दबद्ध कहाँ मुमकिन है? अनगिन नज़में यूँ ही भीतर ही दम तोड़ देती हैं अक्सर !सुंदर रचना के लिए सस्नेह शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहिल शुभकामनाओं में लिपटी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया अनमोल है रेणु जी । सस्नेह आभार..

      हटाएं
  5. वाह!!बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति सखी मीना जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनमोल प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार प्रिय शुभा जी!

      हटाएं
  6. बहुत ही भावपूर्ण रचना, मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
  7. जब ज़िन्दगी के सफे भर रहे होते हैं तो डायरी के सफे खाली ही रह जाते हैं ... बहुत भावपूर्ण रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हौसला अफजाई करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लिखना सफल हुआ दी🙏🙏

      हटाएं
  9. आधे-अधूरे ख्वाब...
    रात भर नींद में
    नज्म लिखते रहे
    बस डायरी के सफहे
    खाली थे वे
    वैसे के वैसे रह गए....एक बार फिर गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हौसला अफजाई का हृदयतल से आभार संजय जी ।

      हटाएं
  10. आधे-अधूरे ख्वाब...
    रात भर नींद में
    नज्म लिखते रहे
    बस डायरी के सफहे
    खाली थे वे
    वैसे के वैसे रह गए
    एक एक शब्द दिल को छूता हुआ ,बहुत ही सुंदर रचना मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्तर
    1. हार्दिक आभार विश्वमोहन जी ! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"