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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

"नारी"

नारी का व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव रचनाकारों की
लेखनी का प्रिय विषय रहा है । मैं भी इस भावना से
परे नहीं हूँ । मुझे नारी का गृहस्थ जीवन की धुरी
होने के साथ-साथ उसका कर्मठ और बुद्धिमतापूर्ण
व्यक्तित्व बहुत मोहता है । नारी के उसी सशक्त
रुप को अपनी लेखनी से अंकित करने का प्रयास
मेरी तरफ से --

नही जानती किसी की नजर में , अहमियत मेरी ।
मैं जानती हूँ अपने घर में , हैसियत मेरी ।।

ओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
कमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ ।।

घर के कोने में सजा  , 'कॉर्नर-पीस' नहीं हूँ मैं ।
मैं तुम्हारे सिर की पाग , अपना मान जानती हूँ मैं ।।

कोशिश भले ही कितनी भी हो , मुझको मिटाने की ।
चुन ली गर कोई डगर , फिर ना हट पाने की ।।

जीवनरुपी कैनवास पर , बिखरे अनगिनत रंग मैं ।
प्रकृति में सिमटी तेजोमय , सतरंगी  आभा सी मैं ।।

★★★★★

20 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार लोकेश जी ।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (३०-११ -२०१९ ) को "ये घड़ी रुकी रहे" (चर्चा अंक ३५३५) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की प्रस्तुति में रचना को सम्मिलित करने के लिए आत्मिक आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में रचना को साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।

      हटाएं
  4. ओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
    कमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ
    बहुत सुंदर और सार्थक रचना मीना जी।

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के आत्मिक आभार अनुराधा जी ।




      हटाएं
  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. नारी शक्ति को जागृत करती हुई बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी आपने सत्य कहा अगर वहअड़ तो कोई उसे उसके कर्मों से डिगा नहीं सकता है, वह मान सम्मान चाहती जरूर है लेकिन अगर कोई उसके मान सम्मान को तहस-नहस करने के लिए आगे बढ़ेगा तो यकीनन वह अपने बचाव के लिए खड़े होने का प्रयास करेगी बहुत ही अच्छी लगी आप की कविता आज के समय में ऐसी कविताएं पढ़कर हमें प्रेरित होकर अपने बचाव के लिए आगे आना चाहिए

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी व्याख्यायित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली अनु जी । ऊर्जावान और सारगर्भित टिप्पणी के लिए हृदय से आभार ।

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  7. नारी के अंदर निहित शक्ति को जागृत करती भावपूर्ण रचना ,सादर नमन मीना जी

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    उत्तर
    1. स्नेहिल नमन कामिनी बहन । आपकी प्रतिक्रिया सृजन का मान और मेरा मनोबल संवर्धन करती है । हार्दिक आभार ।

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  8. नारी किसी भी रूप में घर का अहम् अंग होती है ... इसकी उपेक्षा न करनी चाहिए न होनी चाहिए ... सच कहूं तो घर नारी से ही घर रहता है अन्यथा मकान इंटों को ... सार्थक अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित और सुन्दर समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आत्मिक आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"