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शनिवार, 9 मई 2020

"गुलमोहर"

गुलमोहर...
लाल-पीले फूलों की झब्बेदार 
टोकरी जैसे भरी धूप में 
किसी ने उलट के रख दी 
तने के सिर पर…
उस पेड़ को देख भान होता  है
जैसे.. कुदरत ने 
छतरी तान रखी हो...
मन्त्रमुग्ध सा करता है
अपनी मधुरिमा से
गुलमोहर...
बचपन में खेलते-पढ़ते
बंट जाता था ध्यान
जब कहीं  दूर से सुन जाता
 यह गीत...
'गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता…'
नहीं जानती लिखते वक्त
कौन बसा था ...
'सम्पूर्ण सिंह कालरा जी' के मन में
मगर जब भी जिक्र होता है 
गुलमोहर का..
मेरी स्मृति-मंजूषा से निकलती है
गुड़ की मिठास सी
 वात्सल्यमयी आवाज
 गुलमोहर…!!
🍁🍁🍁

【चित्र: गूगल से साभार】

31 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत सृजन मीना जी
    सुंदर कोमल भाव ।
    अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी का मान बढ़ा । आपकी ऊर्जात्मक उपस्थिति की सदैव प्रतीक्षा रहती है । हार्दिक आभार कुसुम जी !

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की शब्द-सृजन श्रृंखला में रचना को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  3. गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता…'
    नहीं जानती लिखते वक्त
    कौन बसा था ...
    'सम्पूर्ण सिंह कालरा जी' के मन में
    मगर जब भी जिक्र होता है
    गुलमोहर का..
    वाह!!!!
    अद्भुत लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार सुधा जी !

      हटाएं
  4. वाह!

    बहुत ख़ूब!

    गुलमोहर को ख़ूबसूरत बिम्बों और प्रतीकों से सजाया है। गुलज़ार साहब के सृजन का जिस ख़ूबसूरती से आपने ज़िक्र किया है वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

    बार-बार पढ़नेयोग्य रचना।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से रचना का मान बढ़ा आ.रविंद्र सिंह जी 🙏 उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  5. वाह !! मीना जी. ,गुलमोहर का नाम सुनते ही मुझे भी इसी गीत ख्याल आ जाता हैं ,सुंदर ,सरस् और सरल शब्दों में लाज़बाब अभिव्यक्ति ,मन के सुंदर भावों को गुलमोहर की तरह ही सजा दिया आपने ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली । सस्नेह आभार कामिनी जी ।

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. अनमोल प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय 🙏

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. हौसला अफजाई के लिए सादर आभार डॉ. जेन्नी शबनम जी.

      हटाएं
  8. गर्मियों में गज़ब का एहसास कराता है ये पुष्प ... काव्यों में छाया रहता है ... सबकी पसंद है ये फूल और क्यों ण हो ... खिलता है तो इतना की सब झूम उठें ....
    लाजवाब रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजनात्मकता को मान देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी .

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर .

      हटाएं
  10. गुलमोहर को ख़ूबसूरत प्रतीकों से सजाया है मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लम्बे समय के अन्तराल के बाद आपकी अनुपम प्रतिक्रिया से से सृजन का मान बढ़ा संजय जी ।

      हटाएं
  11. uffff

    ik se bdh kar ik rchnaa

    kaafi din baad aayi is traf
    socha jitni rchnaaye pdh skun pdh lungi
    ik pdh kar agli
    agli pdh kar usse agli

    gulmohar...Gulzaar..rang...स्मृति-मंजूषा ..गुड़ की मिठास

    mere sab pasandeeda rang ghol ke rakh diye aapne

    bahut bahut pyaari rchnaa

    bahut aanandit bhaaw deti

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभिभूत हूँ आपसे इतनी दुर्लभ और सराहना सम्पन्न प्रतिक्रियाएं पा कर...लेखन का मान बढ़ा जोया जी । बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"