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मंगलवार, 22 सितंबर 2020

"मन की वीथियां"

ब्रह्मपुत्र का सिन्दूरी जल

और..

भोर की पहली किरण 

पुल से गुजरते हुए

 एक तैल चित्र सा दृश्य

अक्सर दृग पटल पर

उभर आता है

निरभ्र गगन के कैनवास पर

 इन्द्रधनुष सा...

कुछ नाविक जाल लिए

कुछ मछली के ढेर लिए

घर से आते या घर जाते

ना जाने कौन से

 सम्मोहन में बंधे ..

 हिमालय श्रृंखला की गोद में

 बसे इस अँचल में

एक बार का गया कोई

वापस अपने देस नहीं लौटता..

भूला-भटका यदि कोई

लौट भी आता  है तो...

 मेरी तरह स्मृति के गलियारों में

भटकता फिरता है

कामरूप के 

काले जादू में बंधा

उस नाव और नाविक सा..

"जा रहा है कि आ रहा है" के

 भंवर जाल का बोध कराता

जिसमें...

उलझ कर रह जाता है मन

दृष्टिभ्रम सदृश .. 


***

 

26 टिप्‍पणियां:

  1. आह...
    मन में बसी सुंदर, हमेशा ताजा रहने वाली याद और ये दृष्टिभ्रम।
    सुंदर अति सुंदर लिखा है।
    पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत लंबे समय के बाद ब्लॉग जगत में आपकी उपस्थिति सुखद है । आभार आपका सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए...'आत्म निर्भर'के आमन्त्रण के लिए तहेदिल से आभार ।

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को   "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज"   (चर्चा अंक-3833)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार सर चर्चा मंच पर रचना साझा करने हेतु.

      हटाएं
  3. वाह मीना जी आपकी भाषा शैली मुग्ध ही नहीं करती बांध लेती है मुझे ठीक कामरूप के काले जादू जैसे।
    अभिनव सृजन मन की परतों से झांकता सा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभिभूत हूँ आपकी स्नेहसिक्त सराहना पाकर...असीम आभार कुसुम जी 🙏🙏

      हटाएं
  4. हिमालय श्रृंखला की गोद में
    बसे इस अँचल में
    एक बार का गया कोई
    वापस अपने देस नहीं लौटता..
    भूला-भटका यदि कोई
    लौट भी आता है तो...
    मेरी तरह स्मृति के गलियारों में
    भटकता फिरता है
    कामरूप के
    काले जादू में बंधा
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर.. मनभावनी कृति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ.. बहुत बहुत आभार सुधा जी ःः

      हटाएं
  5. शब्दों के आपने बेहतरीन चित्र खींचा है, मैम। सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  6. सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. भूला-भटका यदि कोई
    लौट भी आता है तो...
    मेरी तरह स्मृति के गलियारों में
    भटकता फिरता है
    कामरूप के
    काले जादू में बंधा

    बहुत खूब,आपकी लेखन शैली में भी कुछ कम जादूगरी नहीं है,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर अभिवादन कामिनी जी ! सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ.. बहुत बहुत आभार आपका ..,

      हटाएं
  8. बहुत ही सुंदर सराहना से परे दी लाजवाब बिंब 👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता . सस्नेह..

      हटाएं
  9. आदरणीया मीना भारद्वाज जी, बहुत अच्छी रचना है। सचमुच यहाँ गया कोई भी यहाँ से वापस नहीं लौटता!
    हिमालय श्रृंखला की गोद में
    बसे इस अँचल में
    एक बार का गया कोई
    वापस अपने देस नहीं लौटता..
    सुंदर अभिव्यक्ति!--ब्रजेन्द्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से रचना का मान बढ़ा आदरणीय सर! बहुत बहुत आभार उत्साहवर्धन हेतु 🙏🙏

      हटाएं
  10. कामरूप के जादू का नाम ही सुना है....
    रचना की कुछ पंक्तियाँ सचमुच जादुई हैं -
    "जा रहा है कि आ रहा है" के
    भंवर जाल का बोध कराता
    जिसमें...
    उलझ कर रह जाता है मन
    दृष्टिभ्रम सदृश ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना आपको अच्छी लगी..लेखन सफल हुआ मीना जी!बहुत बहुत आभार आपका ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"