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मंगलवार, 17 नवंबर 2020

"राग-द्वेष"

                          

【 चित्र-गूगल से साभार 】


अनुबंध है प्रेम..

प्राण से प्राण के मध्य

ब्रह्माण्ड सा असीमित

बंधनमुक्त

मगर फिर भी..

बंधनों में ही पल्लवित

असंख्य परिभाषाओं से 

अंलकृत..

मगर समय के साथ 

लुप्त प्रजाति की

वस्तु जैसा हो गया है

असीम प्रगाढ़ता

 ही है गहरी कड़वाहट 

की नींव...

किसी राह चलते

 अजनबी को

प्यार और ईर्ष्या

की नज़र से देखना

मुमकिन नहीं

नामुमकिन सा है 


***

32 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम को बहुत सरसता व गहनता से अभिव्यक्त किया है आपने | बहुत सुन्दर | शुभ कामनाएं |

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर.

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-११-२०२०) को 'प्रारब्ध और पुरुषार्थ'(चर्चा अंक- ३८९८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  3. चर्चा में प्रविष्टि शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार अनीता.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब कहा आपने मीना जी क‍ि - असीम प्रगाढ़ता

    ही है गहरी कड़वाहट

    की नींव...चमकते बंधनों के पीछे छूपा सच बताती रचना

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    1. रचना के मर्म को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी!

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  5. असीम प्रगाढ़ता
    ही है गहरी कड़वाहट
    की नींव...
    प्रेम भी तो प्रेम का आकांक्षी होता है न...
    नहीं तो मधुर न होकर कड़ुवाहट में बदल ही जाता है।..बहुत गहन एवं लाजवाब सृजन।

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    1. रचना के मर्म को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सुधा जी!

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  6. गहन अनुभूतियों से प्रस्फुटित रचना अपना गहरा प्रभाव छोड़ती है - - बहुत सुन्दर रचना।

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    1. सृजन का मान बढ़ाती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार शांतनु जी ।

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  7. उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली..हृदयतल से आभार ऋता शेखर'मधु'जी!

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  8. वाह! बहुत सुंदर गहन भाव प्रकट करती सार्थक रचना,सच कहा आपने ।
    असीम प्रगाढ़ता

    ही है गहरी कड़वाहट

    की नींव...

    किसी राह चलते

    अजनबी को

    प्यार और ईर्ष्या

    की नज़र से देखना

    मुमकिन नहीं

    नामुमकिन सा है ।
    अभिनव प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार कुसुम जी!

      हटाएं
  9. किसी राह चलते
    अजनबी को
    प्यार और ईर्ष्या
    की नज़र से देखना
    मुमकिन नहीं
    नामुमकिन सा है
    सुंदर रचना
    शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सधु चन्द्र जी !

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  10. बिल्कुल सत्य । गागर में सागर सरीखी रचना । अभिनंदन मीना जी ।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा..हार्दिक आभार जितेंद्र जी ।

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  11. प्रेम और द्वेष ... एक मन में हैं दोनों ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  12. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा । हार्दिक आभार नासवा जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"