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बुधवार, 10 मार्च 2021

'सम्मोहन"

उस पार के.. 

अज्ञात को ज्ञात करने 

के लिये

एक सम्मोहन है

 जो अक्सर

देता है मुझे आमन्त्रण

पाँवों की एक

अबूझ सी रस्साकस्सी है 

लहरों के साथ…

बजरी सी माटी मिल

 लहरों संग

 खिसका रही है 

उनका अस्तित्व

बस एक जिद्द है 

जिसके बल पर

 खड़ी हूँ निश्चल सी

एकाग्रता है कि..

मंत्र मुग्ध है

अपने आप में

जानती हूँ जब यह बंधन टूटेगा 

मन करेगा कि..

चलती चली जाऊं

 सागर के उस पार 

जहां उफ़ुक़ पर

डूब रहा है सिंदूरी सूरज


***

47 टिप्‍पणियां:

  1. अज्ञात से ज्ञात की ओर का अधिगम हर किसी को कहाँ नसीब।
    बहुत सुंदर सृजन।
    नई रचना

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 मार्च 2021 को साझा की गई है......"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" परआप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में"सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार 🙏

      हटाएं
  3. बहुत अच्छी रचना है यह मीना जी । सहज अभिव्यक्ति ऐसी ही होती है । काश ऐसा सचमुच हो पाए !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचना।
    शिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भी परिवार सहित शिव त्रयोदशी की की बहुत बहुत बधाई सर! उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार 🙏

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी ।

      हटाएं
  6. बहुत ही सुंदर सृजन सराहनीय सृजन।
    मन को मोहता।
    सादर

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    उत्तर
    1. सराहना भरी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,मीना दी।

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।

      हटाएं
  8. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को साझा करने हेतु हार्दिक आभार दिलबाग सिंह जी ।

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  9. ज्ञात से अज्ञात की और बढ़ते कदम और उफ़क की लालिमा . बहुत कुछ समेटा इस रचना में .

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    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखनी सफल हुई । हार्दिक आभार मैम ।

      हटाएं
  10. उस पार के..
    अज्ञात को ज्ञात करने
    के लिये
    एक सम्मोहन है
    जो अक्सर
    देता है मुझे आमन्त्रण
    अज्ञात को जानने की इच्छा और उत्सुकता.....इधर के बंधनों में बंधकर उस पार की चाह......सिंदूरी सूरज का डूबना ....जीवन का सांंध्यकाल...
    बहुत ही चिन्तनपरक... लाजवाब सृजन।

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    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखनी सफल हुई । हार्दिक आभार सुधा जी । सस्नेह ।

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।

      हटाएं
  12. महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं मीना जी।
    आपके शब्दों का जादू सम्मोहित करता है सदा लगता है इसमें कुछ और है जो ढूंढने की जिज्ञासा रहती है,जैसे उफ़ुक़ के पार का सिंदुरी सूरज।
    अभिनव।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भी महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं कुसुम जी । आपकी स्नेहिल उपस्थिति सदैव हर्ष प्रदान करती है। सराहना भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।

      हटाएं
  13. सागर के उस पार

    जहां उफ़ुक़ पर

    डूब रहा है सिंदूरी सूरज

    जीवनदर्शन समेटे, चिन्तनपरक... लाजवाब सृजन।सुधा जी ने इसके मर्म को भलीभांति समझा दिया।
    बस यही जीवन है,सादर नमन मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित सराहना भरी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार कामिनी जी ।

      हटाएं
  14. महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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    उत्तर
    1. आपको भी महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं सर🙏

      हटाएं
  15. आपके ब्लॉग पर फौलोर्स का गेजेट नहीं लगा है . मेल से फौलो तो किया है लेकिन कई बार मेल देख नहीं पाते . प्रयास रहेगा कि निरंतर आपके ब्लॉग पर आते रहें .

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    उत्तर
    1. आदरणीया संगीता जी,
      सादर नमस्कार ! आपको 74 फोटोज के नीचे छोटे से blue box में follow लिखा है उसको press करना है।अगले ऑप्शन में फिर follow के विकल्प को press करना है । मैंने आपको फॉलो कर रखा है । आपकी नजरों मे आती रहूँगी🙏😊

      हटाएं
    2. बिलकुल आपको नज़र में रखेंगे . आज फ़ॉलो कर लिया है कल दिख नहीं रहा था तो इ मेल से किया था :)

      हटाएं
    3. आपके स्नेह से अभिभूत हूँ 🙏😊 बहुत बहुत आभार 🙏😊

      हटाएं
  16. लहरों संग

    खिसका रही है

    उनका अस्तित्व

    बस एक जिद्द है

    जिसके बल पर
    कितने सुन्दर भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है। सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार अनुज संजय जी ।

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. बहुत खूबसूरत भावों की अविरल अभिव्यक्ति..

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी सुन्दर सराहना भरी प्रतिक्रिया हेतु।

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  19. बहुत अच्छी कविता ।हार्दिक शुभकामनाएं

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!

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  20. जो अज्ञात है वो तो उफुक के पास भी ज्ञात नहीं होने वाला ... ये एक मृग तृष्णा है जो बस आकर्षित करती है ...

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    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार नासवा जी।

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  21. बहुत ही खूबसूरत, आप तो लिखती ही कमाल का है, मन को भा गई मीना जी,पंथी हूँ मैं इस पथ का....
    ढेरों बधाई हो, शुभ प्रभात

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    उत्तर
    1. सुप्रभात ज्योति जी, आपकी मनोबल संवर्द्धन करती उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"