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रविवार, 18 अप्रैल 2021

"प्रश्न"

                      

लीक पर चलती 

पिपीलिका..

एकता-अनुशासन और

संगठन की प्रतीक है

आज हो या कल

 बुद्धिजीवी उनकी

कर्मठता का लोहा मानते  हैं

प्रकृति के चितेरे सुकुमार कवि

 सुमित्रानंदन पंत जी ने भी कहा है-

"चींटी को देखा?

वह सरल, विरल, काली रेखा

चींटी है प्राणी सामाजिक,

वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक।"

कविता याद करते समय

 एक खुराफाती प्रश्न

मन में अक्सर  उभरता था

मगर…,

काम के बोझ में डूबी माँ

और होमवर्क की कॉपियों में

डूबी शिक्षिका की

हिकारत भरी नज़रों से

बहुत डरता था

है तो धृष्टता..,

 लेकिन आज भी

मेरे मन में यह बात

 खटकती है

और प्रश्न बन बार-बार उभरती है

प्रश्नों का क्या ?

किसी के भी मन में आ सकते हैं

मैं इस धृष्टता के लिए

क्षमा चाहती हूँ

और अपना वही पुराना

घिसा-पीटा सा प्रश्न

 दोहराती हूँ

पिपीलिका अगर लीक पर

चल कर भी..

साहस और लगन की प्रतीक है

तो…,

लीक पर चलने वाला इन्सान

क्यों"लकीर का फकीर" है


***

【चित्र-गूगल से साभार】

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सटीक प्रश्न है आपका,ऐसे कुछ प्रश्न आजीवन हमारा पीछा करते हैं, जिन्हें समाज में सकारात्मक दृष्टि प्रदान होती है,इस वजह से हम अपना दृष्टिकोण नहीं रख पाते,आपने बड़ी बुद्धिमत्ता से उस बात को कह दिया, बहुत बधाई आपको मीना जी ।

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    1. आप की चिंतनपरक प्रतिक्रिया हृदय के बहुत करीब लगी जिज्ञासा जी । बहुत बहुत आभार आपका ।

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  2. प्रश्न सर्वथा उचित है आदरणीया मीना जी। उत्तर के लिए वही करना होगा जो आपके ब्लॉग का नाम है अर्थात् मंथन - अपने मन के विचारों का। इस विचारोत्तेजक सृजन हेतु निश्चय ही आप अभिनंदन की पात्र हैं।

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    1. सत्य कथन आपका जितेन्द्र जी । कहीं एक बार परिचय में लिखा था- "मंथन विचारों का …., मंथन जीवन के अनुभूत पलों का…., और समर्पित शुभ्रवस्त्रावृता माँ सरस्वती को ।” यही भाव मन में रख मैंने ब्लॉग का नाम “मंथन”रखा । कोशिश करती हूँ उस भाव के साथ चलने की । आभारी हूँ आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हेतु ।

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  3. आपके मन में प्रश्न अभी तक उमड़ घुमड़ रहा है और आप चाहती हैं अपने प्रश्न का समाधान तो विचार कीजिये कि लीक के दोनों जगह अर्थ क्या हैं ?
    चींटी लीक पर चल रही है एक के पीछे एक हो कर .. संगठित हो ...वो असल में लीक पर नहीं बल्कि लकीर बना कर चल रही है ..एक नयी लकीर बन रही है हर चींटी उस लकीर का एक हिस्सा है ... जब कि लकीर पर चलने वाला व्यक्ति किसी और कि बनायीं गयी लकीर अर्थात मार्ग पर चल रहा है तो उसे कह दिया जाता है कि लकीर के फ़क़ीर हो .. अपना रास्ता नया नहीं बनाने की हिम्मत है ....

    जो भी है ...जैसा मुझे समझ आया वैसा मैंने जवाब देने का प्रयास किया ... लेकिन आपकी रचना सार्थक है जिसने विचार करने पर मजबूर किया ...

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    1. आभार बहुत सारा ..,आपकी समझाइश भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए । कभी-कभी बचपन को याद कर लेने का बड़ा लाभ है । आप जैसी विदुषी और स्नेहिल हस्ती से कुछ सीखने के लिए🙏 पुनः बहुत बहुत आभार । आपकी स्नेहाकांक्षी 🙏

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार १८ अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,


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    1. सांध्य दैनिक मुखरित मौन में रचना साझा करने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी ।

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  5. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार सर!

      हटाएं
  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 19-04 -2021 ) को 'वक़्त का कैनवास देखो कौन किसे ढकेल रहा है' (चर्चा अंक 4041) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. सृजन को चर्चा मंच की चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार रवीन्द्र सिंह जी । सादर।

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  7. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार सखी!

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ।

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  9. बहुत सुंदर और सार्थक रचना सखी।

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    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया। बहुत बहुत आभार सखी!

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  10. बहुत सुन्दर रचना।
    विचारों का अच्छा सम्प्रेषण है ।

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार सर!

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  11. लीक पर चलने वाला इन्सान

    क्यों"लकीर का फकीर" है

    बेहद "गंभीर प्रश्न" चीटियों का साथ चलना शायद परिवार के एकता का सूचक है मगर "लकीर का फकीर" अर्थात खुद में कुछ करने का साहस नहीं नई राह चुनने की हिम्मत नहीं तो चलते रहो दूसरों के बनाये पथ पर। विचारणीय प्रश्न। सुंदर सृजन आदरणीया मीना जी

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    उत्तर
    1. गहन मर्म लिए सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी!

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  12. वाजिब और सोचने वाला प्रश्न है ... इंसान लीक पर चले अनुशासन के लिए, व्यवहार के लिए, पर मार्ग खुद अपना बनाए क्योंकि बुद्धी का विकास केवल इंसान में है ... उपयोग होना उसका जरूरी है ...

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    1. सकारात्मक चिंतन को प्रेरित करती प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार नासवा जी !

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  13. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय मीना दी।
    सादर

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    उत्तर
    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया। बहुत बहुत आभार अनीता जी!

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  14. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार

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  15. सुन्दर रचना...अच्छी होती हैं वो रचनाएं जो पाठकों के लिए अंततः एक प्रश्न छोड़ें और उन्हें थोड़ा चिंतन-मनन करने को प्रेरित करें

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ ।बहुत बहुत आभार शीलव्रत मिश्रा जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"