पहली पहल बरसेंगे बादल
और माटी भी महकेगी
मैं होऊं चाहे कहीं भी
यह महक मेरी अपनी सी है
मुझे याद बहुत आएँगी
आधा उजला सा चाँद
जब उतरेगा नभ आँगन में
कोहरे में लिपटी कुछ यादें
बेमतलब सी खाली बातें
मुझे याद बहुत आएँगी
मेरी आदत कुछ कहने की
तेरी आदत चुप रहने की
भरने बोझिल निर्वात
बन जाती नेह की नींव
एक तुलसी वाली चाय
मुझे याद बहुत आएगी
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【चित्र:-गूगल से साभार】
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मनोज जी ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-8-21) को "भावनाओं से हैं बँधें, सम्बन्धों के तार"(चर्चा अंक- 4164) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी। आप सभी को रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
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कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी।
हटाएंये चाय न जाने कितनी यादों को ताज़ा कर देती है ।।
जवाब देंहटाएंसही कहा मैम आपने ...तहेदिल दिल से आभार आपका उत्साहवर्धन करती उपस्थिति हेतु ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएंचुस्की ले लेकर पिया ... यादों को और बादल बरस गया । बहुत ही सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती उपस्थिति हेतु तहेदिल दिल से आभार अमृता जी !
हटाएंआधा उजला सा चाँद
जवाब देंहटाएंजब उतरेगा नभ आँगन में
कोहरे में लिपटी कुछ यादें
बेमतलब सी खाली बातें
मुझे याद बहुत आएँगी
यादें याद आने के लिए ही तो होती है मनमोहक याद़ं का गुलदस्ता सी मनभावन अभिव्यक्ति
वाह!!!
उत्साहवर्धन करती उपस्थिति हेतु तहेदिल दिल से आभार सुधा जी ।
हटाएंवाह। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार 🙏
हटाएंअच्छी लगी आपकी यह रचना मीना जी।
जवाब देंहटाएंरचना आपको अच्छी लगी लेखन सफल हुआ । हार्दिक आभार जितेन्द्र जी ।
हटाएंएक तुलसी वाली चाय ...
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है ... कितनी यादें एक चीज़ से जुड़ जाती हैं ...
उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु
हटाएंहार्दिक आभार नासवा जी ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी ।
प्रकृति के आंगन में चुस्की वाली चाय किसे नहीं भाएगी ।
जवाब देंहटाएंसच सखी तुम्हारी याद बहुत आएगी ।।
.. सुन्दर नायाब सृजन।
हृदयस्पर्शी अनपम प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार प्रिय जिज्ञासा जी।
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