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बुधवार, 17 नवंबर 2021

“क्षणिकाएं”

दूर से आती …,

‘विंड चाइम्स‘ की 

घंटियों की आवाज़

बंद कमरे में भी बता जाती हैं

हवाओं का रुख...

संकेत देना कुदरत का

और फिर

संभल कर चलना 

खुद का काम है

***

उलझनों के चक्रव्यूह से

बाहर निकलने लगी हैं 

अब स्त्रियां…,

तारीफ़ करते इनके पति

 सीधे सच्चे 

साधक लगते हैं ।

साफगोई

बड़प्पन की प्रथम सीढ़ी है ।।

***

शून्य से ...

निर्वात में डूबी अभिव्यक्ति, 

विराम चाहती है ।

विचार….,

मन आंगन के नीलगगन में,

खाली बादल से विचरते हैं ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा प्रयास है मीना जी। आपकी पहली क्षणिका मुझे बहुत पसंद आई।

    जवाब देंहटाएं
  2. शून्य से निर्वात में डूबी अभिव्यक्ति।
    वाह!क्या खूब कही आपने।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१८-११-२०२१) को
    ' भगवान थे !'(चर्चा अंक-४२५२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी!

      हटाएं
  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को पांच लिंकों का आनन्द में स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार रवीन्द्र जी🙏

      हटाएं
  5. शून्य से ...
    निर्वात में डूबी अभिव्यक्ति,
    विराम चाहती है ।
    विचार….,
    मन आंगन के नीलगगन में,
    खाली बादल से विचरते हैं ।
    वाह क्या खूब लिखा है!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार मनीषा जी !

      हटाएं
  6. बहुत सुंदर मीना जी ,हर क्षणिका अपने गुण की तरह छोटे में गहन अर्थ समेटे,
    सुंदर अभिनव अभिव्यक्ति।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पा कर लेखनी सार्थक हुई । आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु हृदय से आभार कुसुम जी !

      हटाएं
  7. जीवन के हर परिदृष्य पर गहन अर्थ समेटे सारगर्भित और लाजवाब क्षणिकाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पा कर लेखनी सार्थक हुई । आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु हृदय से आभार जिज्ञासा जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. शून्य से ...

    निर्वात में डूबी अभिव्यक्ति, 

    विराम चाहती है ।

    सुन्दर सृजन

    जवाब देंहटाएं
  10. गहन अर्थों के साथ बहुत सुन्दर सारगर्भित क्षणिकाएं
    संकेत देना कुदरत का

    और फिर

    संभल कर चलना

    खुद का काम है
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पा कर लेखनी सार्थक हुई । आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु हृदय से आभार सुधा जी !

      हटाएं
  11. अलग भाव लिए तीनों लाजवाब क्षणिकाएं ... पर गहरी बात सहज कह रही हैं ... स्त्रियों को अब रोके रहना सम्भव भी नहीं है ... वो सदा से आगे हैं रहेंगी ...

    जवाब देंहटाएं
  12. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पा कर लेखनी सार्थक हुई । आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु हृदय से आभार नासवा जी!

    जवाब देंहटाएं
  13. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-3-22) को "सैकत तीर शिकारा बांधूं"'(चर्चा अंक-4374)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  14. विशेष प्रस्तुति में मेरी रचनाओं का चयन हर्ष और गर्व का विषय है मेरे लिए.., बहुत बहुत आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुंदर आज भी लगता है अभी अभी नवल विचारों का निर्झर फूटा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी पुनः प्रशंसा पा कर अभिभूत हूँ कुसुम जी 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"