Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

बुधवार, 13 जुलाई 2022

“त्रिवेणी”



दिन थक गया चलते चलते और अब तो

सूरज की तपिश भी बुझ सी गई है …,


आओ ! हम भी सामान समेट लें ।


🍁


हवाएँ चिंघाड़ कर धकेलती रही टफण्ड ग्लास

और वह भी टिका रहा स्थितप्रज्ञ सा…,


जीने का सलीका कभी-कभी यूँ भी दिखता है ।


🍁


 बेज़ुबान अनगढ़ पत्थरो के बीच से

 बह निकला कल-कल करता जल स्त्रोत..,


वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है  ।


🍁


28 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आ. ओंकार सिंह ‘विवेक’ जी ।

      हटाएं
  2. बेज़ुबान अनगढ़ पत्थरो के बीच से

    बह निकला कल-कल करता जल स्त्रोत..,



    वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।.. वाह वाह!बहुत सुंदर 👌

    जवाब देंहटाएं
  3. बेज़ुबान अनगढ़ पत्थरो के बीच से

    बह निकला कल-कल करता जल स्त्रोत..,



    वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।
    हर त्रिवेणी लाजवाब । 👌👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
  4. सृजन पर आपकी सराहना हृदय को प्रसन्नता और लेखनी को ऊर्जा प्रदान करती है । स्नेहिल सादर आभार आ . दीदी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी !

      हटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द के आमन्त्रण के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्वेता
      जी !

      हटाएं
  7. जी दी,
    हम दो बार आमंत्रण प्रेषित किये पर शायद स्पेम में जा रही .. दी कृपया आप देखिये न।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. थैंक्यू श्वेता.आपने सही कहा अभी देखा तो पब्लिश कर दिया ।सस्नेह..।

      हटाएं

  8. वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।बहुत ही सटीक सार्थक बात कही है आपने । सराहनीय पोस्ट ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी ! सादर सस्नेह…,

      हटाएं
  9. दिन थक गया चलते चलते और अब तो

    सूरज की तपिश भी बुझ सी गई है …,



    आओ ! हम भी सामान समेट लें ।

    धीरे धीरे समान समेटना ही पड़ेगा ☺️

    जीवन की सीख देती बहुत सुंदर त्रिवेणी।
    सादर नमस्कार मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी ! सादर सस्नेह…,

      हटाएं
  10. कविता के तीनों खण्ड बहुत ही अर्थपूर्ण हैं . दिवस का अवसान और सामान का समेट लेना , जीने का सलीका सिखाने वाले तूफान और खामोशियों का बोलना सीखना ..वाह सुन्दर बिम्ब .

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली…, हार्दिक आभार मैम ! सादर सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  12. वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है, सच कहा आपने।

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया सदैव लेखनी को मान सम्पन्न सार्थकता देती है बहुत बहुत आभार जितेंद्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही सुन्दर त्रिवेणी
    सार्थक एवं पूरक अंतिम पंक्ति
    लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हार्दिक आभार सुधा जी ! सादर सस्नेह…,

      हटाएं
  15. एक एक त्रिवेणी बहुत सुंदर!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहनीय प्रतिक्रिया द्वारा लेखनी को मान प्रदान करने के लिए आपका सादर आभार 🙏

      हटाएं
  16. प्रणाम दीदी जब भी व्यस्तता घेर लेती है ब्लॉग में बहुत कुछ पीछे रह जाता है अब जैसे आपके ब्लॉग पर कई दिनों बाद आना हुआ पर तो सुन्दर त्रिवेणी पढ़ने को मिली

    जवाब देंहटाएं
  17. व्यस्तताएँ जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं अनुज !
    आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।शुभाशीष सहित हार्दिक धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  18. प्राकृतिक का चित्रण व बातें करना , बहुत अच्छा लगा ।
    - बीजेन्द्र जैमिनी
    पानीपत - हरियाणा

    जवाब देंहटाएं
  19. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय 🙏

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"