पल !
मुझे भी चलना है
तुम्हारे साथ..
तुम से कदम मिलाकर
चल पड़ूँगी
इतना भरोसा तो है मुझे
खुद पर..
मैं तुमसे बस तुम्हारे अस्तित्व का
दशमांश चाहती हूँ
वो क्या है ना..?
तुम्हारी ही तरह
मेरे साझे भी काम बहुत हैं
चलने से पहले..
चुन लेना चाहती हूँ अपनी ख़ातिर
रेशम से भी रेशमी
रिश्तों के तार
फ़ुर्सत में उन्हें सुलझा कर
निहायत ही ..
खूबसूरत सी माला
जो गूँथनी है ।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 मई 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार सहित धन्यवाद पम्मी जी ।
हटाएंचुन लेना चाहती हूँ अपनी ख़ातिर
जवाब देंहटाएंरेशम से भी रेशमी
रिश्तों के तार
फ़ुर्सत में उन्हें सुलझा कर
निहायत ही ..
खूबसूरत सी माला
जो गूँथनी है ।---बहुत ही शानदार
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से धन्यवाद ।
हटाएंवाह, सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह, सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से धन्यवाद ।
हटाएंसुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से धन्यवाद ।
हटाएंरेशम से भी रेशमी
जवाब देंहटाएंरिश्तों के तार
फ़ुर्सत में उन्हें सुलझा कर
निहायत ही ..
खूबसूरत सी माला
जो गूँथनी है ।
लाजबाब, रिश्तों की सुगंध से सराबोर कृति
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से धन्यवाद ।
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