बिखरी कड़ियों को समेटने की श्रृंखला में पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना) मेरा तीसरा पद्य-संग्रह ,जिसमें सौ-सौ की संख्या में क्षणिकाएँ,त्रिवेणी एवं हाइकु संग्रहित हैं प्रकाशित हुआ है । ब्लॉगिंग संसार के विज्ञजनों के साथ मेरी बौद्धिक यात्रा का पथ सुखद और सार्थक रहा, इसके लिए हृदय की असीम गहराइयों के साथ ब्लॉगिंग संसार के सभी साथियों का आभार एवं धन्यवाद व्यक्त करती हूँ ।प्रकाशित पुस्तक पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना) के कुछ
अंश -
“क्षणिका”
तिहाई का शिखर छू कर बनना तो था
शतकवीर ..,
मगर वक़्त का भरोसा कहाँ था ?
कठिन रहा यह सफ़र …,
“निन्यानवें के फेर में आकर चूक जाने की”
बातें बहुत सुनी थीं ।
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“त्रिवेणी”
अच्छा लगता है मुझे सागर तट पर देर तक बैठना
लहरों के शोर और सागर की गर्जन से तादात्म्य रखना..,
बाहर-भीतर की साम्यता मेरे भीतर तटस्थता भरती है ।
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“हाइकु”
गोधूलि बेला -
घोंसले में लौटता
पक्षी का जोड़ा ।
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“मीना भारद्वाज”
बहुत सुंदर रचनाएँ है । शीर्षक भी बड़ा प्यारा है । अलग - अलग बँटी होकर भी चिनार की ये पत्तियाँ आपस में जुड़ी हुई एक है , वैसे ही क्षणिकाओं , त्रिवेणियों और हाइकु से मिलकर बना यह रचना - संग्रह एक चैतन्य अन्तस के भावबोध से संपन्न है ।
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित सराहना से सृजनात्मकता का मान बढ़ा, हार्दिक आभार एवं धन्यवाद सहित सादर नमस्कार प्रिया जी 🙏
हटाएं“निन्यानवें के फेर में आकर चूक जाने की”
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन
साधुवाद
आपकी उपस्थिति और सराहना सम्पन्न आशीर्वचन से मन अभिभूत हुआ ।हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार सर 🙏
हटाएं“निन्यानवें के फेर में आकर चूक जाने की”
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन
साधुवाद
सादर
सादर आभार सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज 🙏
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