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बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

“मनःस्थिति”

बीमार सा रहने लगा है 

मन अब ..,

बन्द कर लिए इसने अपने वजूद के

खिड़की-दरवाज़े..,

हवा की छुवन भी अब 

ताजगी की जगह सिहरन सी

भरने लगी है

जानती हूँ ऐसा ही रहा तो

एक दिन…

यह धीरे-धीरे यूँ ही मर जाएगा

अभिव्यक्ति ख़ामोश हो जाएगी 

और..,

बहुत सारी बातें किसी शेल्फ़ में रखे 

सामान की तरह 

गर्द की परतों तले दब कर

समय के साथ 

अर्थहीन होती चली जाएँगी।

***


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 2 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. पांच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु आपका बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद 🙏

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  2. अतीत कि बातें मन के लिए वाकई अर्थहीन सी हो रही हैं समझ नहीं आ रहा कि ये मन मर रहा है या परिपक्व हो रहा है । जो बातें तब बहुत महत्वपूर्ण थी शायद अब मन को बचकानी सी लग रही ।

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    1. सारगर्भित विचारों से लेखन को सार्थकता मिली, हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी !

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  3. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद सर !

      हटाएं
  5. जब अर्थहीन हो जाता है अतीत तब ही तो सार्थक को आगे आने का स्थान मिलता है

    जवाब देंहटाएं
  6. सारगर्भित विचारों से लेखन को सार्थकता मिली, हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी !

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  7. समय धीरे धीरे सब कुछ मिटा देता है ... ये तो नियति है ... जब तक हैं चमक रहे बस यही अच्छा ...

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  8. सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी !

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"