बीमार सा रहने लगा है
मन अब ..,
बन्द कर लिए इसने अपने वजूद के
खिड़की-दरवाज़े..,
हवा की छुवन भी अब
ताजगी की जगह सिहरन सी
भरने लगी है
जानती हूँ ऐसा ही रहा तो
एक दिन…
यह धीरे-धीरे यूँ ही मर जाएगा
अभिव्यक्ति ख़ामोश हो जाएगी
और..,
बहुत सारी बातें किसी शेल्फ़ में रखे
सामान की तरह
गर्द की परतों तले दब कर
समय के साथ
अर्थहीन होती चली जाएँगी।
***
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 2 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी है....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
पांच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु आपका बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद 🙏
हटाएंअतीत कि बातें मन के लिए वाकई अर्थहीन सी हो रही हैं समझ नहीं आ रहा कि ये मन मर रहा है या परिपक्व हो रहा है । जो बातें तब बहुत महत्वपूर्ण थी शायद अब मन को बचकानी सी लग रही ।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित विचारों से लेखन को सार्थकता मिली, हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी !
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसटीक और सुंदर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद सर !
हटाएंजब अर्थहीन हो जाता है अतीत तब ही तो सार्थक को आगे आने का स्थान मिलता है
जवाब देंहटाएंसारगर्भित विचारों से लेखन को सार्थकता मिली, हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी !
जवाब देंहटाएंसमय धीरे धीरे सब कुछ मिटा देता है ... ये तो नियति है ... जब तक हैं चमक रहे बस यही अच्छा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी !
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