(1)
आजकल पता नही क्यों?
गुलाब खूबसूरत तो बहुत होते हैं
मगर उनमें खुश्बू नही होती
लगता है इनको भी शहरों की
लत लग गई है ।
(2)
मेरी लिखावट में कुछ कमी सी है
काम तो भारी है
ठीक तो करना ही पड़ेगा
कुछ काम गणित के सवाल होते है
समझ में आ जाए तो ठीक
ना आए तो जी का जंजाल होते हैं
(3)
बातों का मौसम भी अजीब होता है ।
तीखी बातें सर्द हवाओं की तरह होती हैं;
जब भी चलती हैं बस ठिठुरन बढ़ा जाती हैं ।
(4)
तेरी यादों का पुल्लिन्दा तकिए के सिरहाने रखा है ।
फुर्सत के पलों में जब जी चाहा खोल लिया;
जब जी चाहा बाँच लिया ।
(5)
नफरत निभाना सब के बस की बात कहाँ?
इस के लिए भी मुहब्बत से अधिक;
शिद्दत की जरुरत होती है ।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंकों का आनन्द में" मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी ।
हटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी .
हटाएंसुन्दर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील जी .
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