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रविवार, 16 अक्तूबर 2016

“क्षणिकाएँ”

( 1 )

अपनेपन की धूप

कुछ कुनकुनी सी है
नील निर्झर दृगों का गीलापन
गवाह है इस बात का
उस पार के ग्लेशियर
पिघलने लगे हैं .

( 2 )
कौन से ईंट - गारे से तुमने
जिद्द का मजबूत पुल
तैयार किया है ?
स्नेहभाव से कितनी भी सेंध लगाओ
फेवीकोल के जोड़ से भी
मजबूत और गाढ़ा जोड़ है
लाख जतन करो टूटता ही नही .

XXXXX

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- "मीना भारद्वाज"