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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

“बचपन”

पहली बारिश की छम-छम
गीली माटी की खुश्बू
इस सौंधी सी सैकत से
कुछ सृजन करें मैं और तू ।

नन्हे हाथों से थपक-थपक
कभी घर कभी मंदिर बनता था
छोटे-छोटे तिनकों से
कभी तोरणद्वार सजता था ।

गुड्डे-गुड़िया की शादी में
कितना पकवान बनता था
टूटी नीम की टहनी  से
उस घर का  आंगन सजता था ।

बारिश का पानी गढ्डों में
उस गाँव का ताल बनता था
कागज की  छोटी सी  कश्ती
बजरे संग चप्पू चलता था ।

ये सब बचपन की बातें हैं
छुटपन में ही खो जानी है
कद बढ़ता है हम बढ़ते हैं
ये बातें फिर बेमानी है ।

XXXXX

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सुन्दर उम्दा प्रस्तुति खासकर ये पंक्तियाँ तो दिल को छू गईं
    ये सब बचपन की बातें हैं
    छुटपन में ही खो जानी है
    कद बढ़ता है हम बढ़ते हैं
    ये बातें फिर बेमानी है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी उत्साह‎वर्धित करती प्रतिक्रिया‎ के लिए बहुत बहुत‎ धन्यवाद संजय जी .

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"