(1)
पछुआ पुरूवाई संग सौंधी सी महक है
कहीं  पहली बारिश  की बूँद गिरी होगी ।
माँ के हाथ की सिकती रोटी  यूं ही महका करती थी ।।
                    (2)
ढलती  सांझ  और नीड़ में लौटते परिन्दे 
सूरज संग मन भी डूबता जाता है ।
ईंट पत्थरों से बने हो वर्ना हिचकी जरूर आती ।।
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार लोकेश जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सुधा जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंकों का आनन्द में" मेरी रचना को मान देने के लिए तहेदिल से धन्यवाद यशोदा जी ।
हटाएंvery beautiful...
जवाब देंहटाएंThanks Rinki . Welcome to my blog .
हटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार .ब्लॉग पर आपका स्वागत है विश्वमोहन जी .
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका "मंथन" पर.. आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद सुशील जी ।
हटाएंबहुत सुंदर त्रिवेणी मीना जी।भाव बहुत अच्छे बन पड़े है।
जवाब देंहटाएंरचना सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी ।
हटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंआभार ध्रुव सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर त्रिवेणी मीना।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी .
हटाएंगज़ब ... त्रिवेणी की धार तेज़ होती जा रही है ... बहुत लाजवाब अर्थपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना के लिए तहेदिल से आभार दिगम्बर जी .
जवाब देंहटाएंकुछ जरूरी कार्यो के चलते व्यस्तता रहती है मीना जी पर जब भी ब्लॉग पढता हूँ बहुत कुछ पीछे रह जाता है ...
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथ की सिकती रोटी यूं ही महका करती थी...सुंदर त्रिवेणी मीना जी
व्यस्तता और काम जीवन के अभिन्न अंग हैं यही निरन्तरता हमें आगे उन्नति के पथ पर अग्रसित करती है .आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है .
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