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शनिवार, 16 सितंबर 2017

“त्रिवेणी"


                  (1)

पछुआ पुरूवाई संग सौंधी सी महक है
कहीं  पहली बारिश  की बूँद गिरी होगी ।

माँ के हाथ की सिकती रोटी  यूं ही महका करती थी ।।

                   (2)
 
ढलती  सांझ  और नीड़ में लौटते परिन्दे
सूरज संग मन भी डूबता जाता है ।

ईंट पत्थरों से बने हो वर्ना हिचकी जरूर आती ।।

                xxxxx

23 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. "पाँच लिंकों का आनन्द‎ में" मेरी रचना को मान देने के लिए‎ तहेदिल से धन्यवाद यशोदा जी ।

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  2. उत्तर
    1. हार्दिक आभार .ब्लॉग पर आपका स्वागत है विश्वमोहन जी .

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  3. उत्तर
    1. स्वागत है आपका "मंथन" पर.. आपकी सुन्दर‎ सी प्रतिक्रिया‎ के लिए धन्यवाद सुशील जी ।

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  4. बहुत सुंदर त्रिवेणी मीना जी।भाव बहुत अच्छे बन पड़े है।

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    उत्तर
    1. रचना सराहना के लिए‎ बहुत बहुत‎ धन्यवाद श्वेता जी ।

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  5. बहुत सुंदर त्रिवेणी मीना।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. गज़ब ... त्रिवेणी की धार तेज़ होती जा रही है ... बहुत लाजवाब अर्थपूर्ण ...

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  8. रचना की सराहना के लिए तहेदिल से आभार दिगम्बर जी .

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  9. कुछ जरूरी कार्यो के चलते व्यस्तता रहती है मीना जी पर जब भी ब्लॉग पढता हूँ बहुत कुछ पीछे रह जाता है ...
    माँ के हाथ की सिकती रोटी यूं ही महका करती थी...सुंदर त्रिवेणी मीना जी

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  10. व्यस्त‎ता और काम जीवन के अभिन्न अंग हैं यही निरन्तरता हमें आगे उन्नति‎ के पथ पर अग्रसित करती है .आपकी प्रतिक्रिया‎ सदैव उत्साह‎वर्धन करती है .

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"