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शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

"भड़ास"

भौगोलिक परिवेश में
धरती की हलचल ।
अन्दरुनी परतों के
खिसकने का हाल
बयान करती है ।
अन्दर सब कुछ‎ ठीक !!‎
मगर सब ठीक कहाँ होता है ?
धरा  को तो ध्वंस झेलना ही पड़ता है ।
इन्सान की भड़ास भी
वसुन्धरा की इस
हलचल से कम नही ।
जब निकलती है तो
ना जाने कितने ही
तंज और व्यंग उगलती है ।
उगल कर ढेर सारा लावा
खुद हो जाती है  शांत और‎
दूसरों पर मुसीबत बनती है ।
      
         XXXXX

21 टिप्‍पणियां:

  1. jo ndian upar se shant lgti hain,pr neechey tej prvah hota hai-ashok

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  2. bhdas nikane ka mtlb khud shant ho jana yani apne tnav ko dur kr dena hota hai,voh andr hi andr bda nuksan krta hai

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    1. मेरा मानना है कि स्वयं की सन्तुष्टि के लिए‎ दूसरों पर रोष प्रकट करना गलत है इसलिए तुलनात्मक‎ दृष्टिकोण‎ में भूकम्प का उदाहरण लिया है कि भूगर्भिक शक्ति‎यों के चलते नुकसान‎ धरती पर रहते जीव भोगते हैं.

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन खुशवंत सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. निमन्त्रण के लिए‎ एवं मेरी रचना "ब्लॉग बुलेटिन" में सम्मिलित कर सम्मान‎ देने के लिए धन्यवाद हर्षवर्धन जी.

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  5. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    उत्तर
    1. लोकतंत्र'' संवाद मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित कर मान देने के लिए‎ आभार ध्रुव सिंह जी.

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/02/55.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. मेरी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक कर मान देने के लिए‎ बहुत‎ बहुत‎ आभार राकेश जी.

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  7. बहुत ही सही लिखा आदरणीय मीना जी | भड़ास निकलने से अपना मन शांत लेकिन सुनने वालों को अनावश्यक मानसिक या और कई तरह की परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं | सादर -----

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  8. बहुत‎ बहुत‎ धन्यवाद रेणु जी.

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  9. सच बात है भड़ास निकालने से अपने को कष्ट होता है
    प्रकृति के साथ इसका सचेत करता मिश्रण
    बहुत खूब
    सादर

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  10. बहुत बहुत‎ आभार ज्योति जी.

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  11. कई बार ये भड़ास निकलनी भी ज़रूरी है नहि तो मन में कूड़ा इकट्ठा हो जाता है ... अच्छी रचना है ...

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    उत्तर
    1. रचना सराहना के लिए हार्दिक आभार नासवा जी.

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"