बहुत बरस बीते
बचपन वाला घर देखे ।
अक्सर वह सपने में मुझ से
मिलने बतियाने आ ही जाता है ।।
उम्र तो पहले भी अधिक ही थी
अब तो और भी बूढ़ा हो गया है ।
वक्त के साथ दीवारों की सींवन
कई जगहों से उधड़ी सी दिखायी देती है ।।
कल सपने में देख कर लगा था
आजकल उदास रहने लगा है ।
नश्वरता और क्षणभंगुरता का दर्द
जर्जरता के साथ टपकने लगा है ।।
जी करता है दौड़ कर आऊँ
और आ कर तुम्हारे गले लग जाऊँ ।
तुम्हारे आंगन की सौंधी खूश्बू
अपने आँचल में भर कर ले आऊँ ।।
हसरतें हैं इतनी तुमसे मिलने की
तुम्हे अनुमान नही होगा ।
अपने बीच पसरे इस वनवास का
ना जाने किस दिन अवसान होगा ।
XXXXX
बहुत ही संवेदनशील रचना है
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद रिंकी .
हटाएंबंटवारे के दोरान पाक से आये मेरे पड़ोसी जोगिन्द्र सिंह जी आज लगभग 90 वर्ष के हो गये लेकिन वो आज भी उन गलियों में जाना चाहते हैं उस घर को देखना चाहते हैं जिसे वो छोड़ के आ गये..
जवाब देंहटाएंवो कहते हैं: पुत्र वो हिंदुस्तान तो बड़ा ही सोणा था..
आपकी रचना पढ़ कर उनकी वो पत्थराई आँखें याद आ गयी.
आपकी प्रतिक्रिया मर्म को पुन: भिगो गई. शब्दों की कमी महसूस होती है आभार प्रकट करने के लिए.हार्दिक धन्यवाद रोहित जी .
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना मीना जी,बहुत सुंदर पंक्तियाँ है👌👌
जवाब देंहटाएंकुछ पुरानी यादें दबी है खपरैल घर के आंगन में
चाहकर भी साथ उस खज़ाने का मोह भुला न सकी।
मोह का बंधन है ही ऐसा...,लाख जतन के बाद भी छूटता कहाँ है. बहुत बहुत आभार श्वेता जी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंस्मृतियों को सजाये एक बेहद सुंदर रचना ..... मन में बचपन की ऐसी कितनी ही स्मृतियाँ इसी तरह जीवित रहती हैं और हमारे वर्त्तमान को भी आनन्दमय बना देती हैं !
जवाब देंहटाएंसही कहा संजय जी बचपन की स्मृतियाँ बड़ी अनमोल होती हैं जिन्हें इन्सान चाह कर भूल नही पाता . ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती है उनका रंग भी गहरा होता चला जाता है .आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंहर चाहत कहाँ पूरी होती है ...
जवाब देंहटाएंफिर जहाँ बचपन बीता हो उसकी यादें तो जाती ही नहि हैं दिल से ... भावनाएँ बैन के शब्दों का रूप ले लेती हैं ... जैसे ये दिलकश रचना ...
सही कहते हैं सचमुच सब चाहते पूरी नहीं होती । रचना सराहना के लिए हार्दिक आभार ।
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