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मंगलवार, 5 जून 2018

"मुलाकात"

हम तो मिलने के बहाने आ गए ।
दोस्ती को आजमाने आ गए ।।

मिलने का वादा था चांद रात का ।
वो वादा  तुम से निभाने आ  गए ।।

चांद के दीदार का बहाना बना।
दोस्ती का कर्ज चुकाने आ गए ।।

सीढ़ियों पर भाग कर आते कदम ।
बीते दिन फिर से दिखाने आ गए ।।

मैं कहूं कुछ या तुम मुझ से कहो ।
याद हम को  दिन पुराने आ गए ।।

XXXXX

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह..बहुत खूब...सुंदर शेर हैंं मीना जी..👌👌

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  2. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 7 जून 2018 को प्रकाशनार्थ 1056 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस सम्मान के लिए हार्दिक आभार रविन्द्र सिंह जी ।

      हटाएं
  3. संबंधो के सम्बन्ध में एक खूबसूरत शेर हर अनकहा कह दिया और वो भी बडी सादगी के साथ मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद संजय जी रचना सराहना के लिए ।

      हटाएं
  4. बहुत ख़ूब ...
    पुराने दिनों की यादें कहाँ ख़ुद से निकलने देती हैं ...
    लाजवाब शेर हैं ...

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"