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सोमवार, 9 जुलाई 2018

"नाराजगी"

समझे न जो कोई बात उसे समझायें कैसे ।
दिल में दबी बात लबों तक लायें कैसे ।।

सच और झूठ का फर्क है बहुत मुश्किल ।
जो सुने न मन की बात उसे सुनायें कैसे ।।

नाराज़गी तो ठीक , अजनबियत की कोई वजह ।
नाराज़  है जो बिना बात उसे मनायें कैसे ।।

बेपरवाही , अनदेखी ,बेकदरी जज़्बातों की ।
टूटे अगर यकीन उसे दिलायें कैसे ।।

मंजिल और राहें एक मगर सोचें जुदा जुदा ।
नादानियों के दौर में अब निभायें कैसे ।।

XXXXXXX

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. "पांच लिंक़ो का आनंद में" मेरी रचना को शामिल कर मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी ।

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  2. वाह बहुत सुन्दर गतिमान गजल ।

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  3. समझे न जो कोई बात उसे समझायें कैसे ।
    दिल में दबी बात लबों तक लायें कैसे ।।
    क्या बात है मीना जी मर्मस्पर्शी कोशिश कर रहा हूँ गुनगुनाने की :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इतनी अच्छी सी हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद संजय जी :)

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  4. सच हैं मुश्किल है उसे समझाना जो समझना न चाहे ... पर प्रेम में ये दिल्लागी भी हो सकती है ।..

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  5. सही कहते हैं आप । दिल्लगी समझने में लगे वक्त की कशमकश ना जाने क्या-क्या सोचने पर मजबूर कर देती है:) । विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार नासवा जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"